Tuesday, October 6, 2015

झूटी गढ़ी हुई और ज़ईफ़ हदीस

JHOOTI AUR ZAEEF HADEES

'मौजूअ' अर्थात गढ़ी हुई हदीस और ज़ईफ़ यानि कमज़ोर हदीसे जिनका रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से कोई ताल्लुक नहीं है और अक्सर देखा गया है की बड़े-बड़े उलेमा भी इन हदीसों को नबी की शान में बिना तहक़ीक़ के बयां कर देते है।

उपदर्वाकारियो ने अपनी मज़लिसो की रौनके बढ़ाने के लिए ऐसा किया। हम चंद अहादीस को निचे लिख रहे है , ताकि उलेमा इन अहादीस से बचे और सही हदीसो को उपयोग में लेवे।

( 1 ) "वतन की मुहब्बत ईमान का हिस्सा है।" इसकी कोई असल नहीं लेकिन मौजूदा दौर में जब वतन-परस्ती का विकास हुआ तो लीडर ही नहीं कुछ उलेमा भी, इसको हदीसे नबवी की हैसियत से पेश करने लगे। इसी तरह आगे देखे |

( 2 ) मैं इल्म का शहर हु और अली उसका दरवाज़ा है। इसका रावी अबु salt हरवि हे जो झूठा था और उसी ने यह हदीस गढ़ी है। किताबुल मौज़ूआत, जिल्द : 1 )

( 3 ) "अगर तुम न होते तो मैं आसमानो को पैदा न करता। " (सिलसिलतुल, अहादीस सीज़इफ , जिल्द - 1, पृष्ठ 2 )

( 4 ) "मेरी उम्मत का इख्तिलाफ रहमत है। " क्या इख्तिलाफ रहमत होता है , यह हदीस भी झूटी है।

( 5 ) "इल्म तलाश करो चाहे चीन ही में क्यों न हो। " इसके दो रावी है दोनों कमज़ोर है 1 अबु हातिम राज़ी और 2 अबु आतिका को इमाम बुखारी ने मुन्कर कहा है और इब्ने हब्बान इस हदीस को बातिल कहते है। इल्मे दीन का खज़ाना किताब-ओ-सुन्नत है जिसका स्थान रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नगरी है। इसे छोड़कर दीं के इल्म की तलाश में चीन जाने का सवाल क्यों पैदा होता है ? इसी तरह

( 6 ) "जिसके कोई बच्चा पैदा हुआ और उसने उसका नाम बरकत हासिल करने के लिए मुहम्मद रखा तो वह और उसका बच्चा दोनों ज़न्नत में होंगे। " (अल्लामा इब्ने केय्यम ने इसे बातिल कहा है। क़ुरआन ने आख़िरत की कामयाबी के लिए ईमान और नेक अमल को ज़रूरी बताया है। बच्चे का नाम मुहम्मद रखने से कोई ज़न्नत में नहीं जा सकता।

( 7 ) "सूद की हुरमत के 70 दर्ज़े है। सबसे कम दर्ज़ा अल्लाह के यहां यह है की आदमी अपनी माँ के साथ सहवास करे। " (इब्ने जौज़ी ने कहा है की यह हदीस सही नहीं है। ) इसी तरह

( 8 ) "हर नबी का एक वसी होता है। अली मेरे वसी और वारिस है। " इसी तरह आगे देखे

( 9 ) "जिसकी मौत इस हाल में हुयी की उसने अपने ज़माने के इमाम को नहीं पहचाना तो वह जाहिलियत की मौत मरा। " (यह हदीस शिआओ और कादियानियों की किताब में पाई जाती है ) इसी तरह

( 10 ) "काबा शरीफ की जगह सारी जगहों से अफज़ल है,जो हिस्सा हुज़ूर के बदन से मिला हुआ है वह काबा से अफज़ल है ,'अर्श' से अफज़ल है, 'कुर्सी' से अफज़ल है। यहां तक की आसमान व ज़मीन की हर जगह से अफज़ल है। " (तब्लीगी निसाब फ़ज़ाइले हज्ज )

ये बात न क़ुरआन न हदीस में फिर इन्हे कैसे मालूम हो गयी? ऐसी बाते कहने से बचना चाहिए जो नबी का मर्तबा खुदा से ज्यादा बढ़ा देने वाली हो ! इसी तरह

( 11 ) "अबु हुरैरह र. अ. मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से नक़ल करते है की मुझ पर दुरुद पढ़ना पुल सिरात पर गुजरने के वक़्त नूर है और जो शख्स जुमा के दिन 80 दफा मुझ पर दुरुद भेजे अस्सी साल के गुनाह माफ़ कर दिए जायेंगे। " (तब्लीगी निसाब, फ़ज़ाइले दुरुद शरीफ , पृष्ठ-40 )

यह हदीस गढ़ी होने के साथ ही कमज़ोर भी है और सहीह हदीस में तो है | "जो मुझ पर एक मर्तबा दुरुद भेजेगा,अल्लाह उस पर 10 मर्तबा दुरुद भेजेगा।

इस तरह से कहीं आलिमो ने अपने रुतबे के लिए कही झूटी हदीसे गढ़ी थी और कुछ ने तो क़ुबूल तक किया है जब उन्हें सजा देने के लिए बादशाह के सामने हाजिर किया।

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