आखिर तकलीद पर क्यो?
ऐ ईमानवालो अल्लाह से इतना डरो जितना उससे डरने का हक़ हैं और तुम इस्लाम के सिवा किसी और दीन पर हर्गिज़ न मरना| (क़ुरान)
ऐ ईमानवालो अल्लाह की इताअत करो और रसूल की इताअत करो और अपने आमाल को बरबाद मत करो| (कुरान)
तुममे बेहतर शख्स वो हैं जो कुरान सीखे और सिखाये|(हदीस)
इस्लाम के शुरु के 400 साल तक तकलीद का नामोनिशान नही था फ़िर अचानक 4 मज़हबो की बुनियाद पड़ गयी और लोगो मे ये बात आम हो गयी चार मज़हब मे से किसी एक मज़हब की पैरवी फ़र्ज़ हैं बिना किसी एक मज़हब की पैरवी के इन्सान कामयाब नही हो सकता| अस्तगफ़िरुल्लाह लोग तकलीद को फ़र्ज़ कहने मे हिचकिचाये भी नही| फ़र्ज़ जो के सिर्फ़ अल्लाह के लिये है, ये तक भी लोगो ने ना सोचा की सिर्फ़ अल्लाह किसी चीज़ को फ़र्ज़ करता हैं अगर तकलीद फ़र्ज़ हैं तो अल्लाह इस लफ़्ज़ का इस्तेमाल कुरान मे भी ज़रूर करता या नबी सल्लल लाहो अलेहे वसल्लम इसको सहाबा को ज़रूर बताते| अगर तकलीद को फ़र्ज़ मान लिया जाये तो नाऊज़ोबिल्लाह अव्वल मुस्लीमीन जो सहाबा थे उनके बाद ताबाईन, उनके बाद ताबाअ ताबाईन, उनके बाद ताबाअ ताबाअ ताबाईन से एक फ़र्ज़ छुट गया| अस्तगफ़िरुल्लाह ! क्या आज का मुसलमान इनसे ज़्यादा मुत्तकी, परहेज़गार हैं| आईये ज़रा इस फ़र्ज़ को जिसे उम्मत मुसलिमा करती चली आ रही हैं इस पर गौर करते है |
तकलीद के मायने
लुगत से - गर्दन बन्द(गले का पट्टा) गले मे डालना और किसी की ज़िम्मेदारी पर काम करना और अपनी गर्दन पर कोई काम ले लेना और माअनी मज़ाज़ी ये हैं की ताबेदारी बगैर हकीकत मालूम किये करना| गले का पट्टा |
(अज़ ग्यास अल लुगत पेज 103)
शराह से - तकलीद ये हैं के जिस कि बाबत मुल्ला कारी हनफ़ी रह0 अपनी किताब शरह कसिदा अमाली मतबुआ युसुफ़ी देहली सफ़ा 34 मे लिखते हैं कि-
तकलीद कुबूल करना किसी और की बात को बिना सबूत के, तो इस मुकल्लिद ने बोझा कुबूल कर लिया अपने इमाम की बात का और अपने इमाम की बात को गले का हार बना लिया|
मगतनम अल हसूल मे फ़ाज़िल कंधारी हनफ़ी फ़रमाते हैं-
तकलीद उस शख्स की बात पर बिना दलील अमल करना हैं जिस की बात शरई हुज्जतो मे से ना हो| तो रुजु करे मुहम्मद सल्लल लाहो अलेहे वसल्लम और इज्माअ से तकलीद नही|
(मयारुल हक़ मतबुआ रहमानी पेज 37)
लिहाज़ा किसी की बात को उसकी दलील (सबूत) के बिना जाने मान लेना तकलीद हैं|
तकलीद कब शुरु हुई ?
शाह वलीउल्लाह किताब हुज्जतुल बलाग मतबुआ सिद्दीकी बरेली पेज 157 मे लिखते है कि-
मालूम होना चाहिए की चौथी सदी हिजरी से पहले के लोग किसी खालिस एक मज़हब पर मुत्ताफ़िक ना थे|
अल्लामा अल मौकाईन मतबुआ अशरफ़ अल मताबअ देहली जिल्द अव्व्ल पेज 222 मे हैं-
ये तक्लीद कि बिदअत चौथी सदी हिजरी मे जारी हुई हैं| ये वो ज़माना हैं कि जिस कि मज़म्मत मुहम्मद सल्लल लाहो अलेहे वसल्लम से साबित हो चुकी हैं|
अल्लामा सनद बिन अन्नान मालिकी तहरीर फ़रमाते हैं-
तक्लीद नाम का मज़हब न था जिसको पढ़ा पढ़ाया जाता हो और इसकी तकलीद की जाती हो बल्कि वो लोग वाकई मे कुरान व हदीस की तरफ़ रुजु करते थे और कुरान व हदीस मे न मिलने कि सूरत मे जिस तरफ़ उनकी बसीरत पहुँचती| इसी तरह ताबाईन रह0 करते रहे| यानि कुरान व हदीस कि तरफ़ रुजु करते अगर कुरान व हदीस से न मिलता तो इज्माअ सहाबा कि तरफ़ रुख करते, अगर इज्माअ भी न मिलता तो खुद इज्तेहाद करते और बाज़ सहाबी के कौल को कवि समझ कर इख्तेयार कर लेते| फ़िर ताबाअ ताबाईन का ज़माना आया| इस ज़माने मे इमाम अबु हनीफ़ा रह0, इमाम मालिक रह0, इमाम शाफ़ई रह0 और इमाम अहमद बिन हंबल रह0 हुए क्योकि इमाम मालिक रह0 ने 179 हिजरी मे वफ़ात पाई और इमाम अबु हनीफ़ा रह0 ने 150 हिजरी मे वफ़ात पाई और इसी साल इमाम शाफ़ई रह0 पैदा हुए और इमाम अहमद बिन हंबल रह0 164 हिजरी मे पैदा हुए| ये चारो भी पहले वालो के तरीके पर थे और इस ज़माने मे भी किसी खास शख्स का मज़हब मुकर्रर न था| जिस की ये चारो इमाम दर्स या तब्लीग करते हो बल्कि इनका अमल भी इत्तेबाअ सुन्नत था| लिहाज़ा तकलीद इनके ज़माने मे भी न वजूद मे आई और अल्लाह ने अपने नबी मुहम्मद सल्लल लाहो अलेहे वसल्लम के कौल को सच कर दिखाया कि बेहतर ज़मानो मे पहले मेरा ज़माना हैं, फ़िर बाद वाले हैं, फ़िर बाद वाले हैं|(सहीह बुखारी)
तमाम तकलीद करने वालो पर अफ़सोस हैं के वो कैसे कहते हैं के दीन ए इस्लाम तकलीद वाला मज़हब हैं| हांलाकि जिन बुज़ुर्गो का नाम लेकर तकलीद की जाति हैं वो 200 हिजरी के आस-पास पैदा हुए हैं और खुद मुहम्मद सल्लल लाहो अलेहे वसल्लम ने जो बेहतर ज़माने की पेशनगोई की वो इससे पहले का हैं|
तकलीद की तरक्की
शाह वलिउल्लाह साह्ब हुज्जतुलाह अल बलाग मतबुआ सिद्दीकी बरेली पेज 151 मे फ़रमाते हैं-
इमाम अबु हनीफ़ा रह0 के शागिर्दो मे सब से ज़्यादा शोहरत इमाम अबु युसुफ़ रह0 कि हुई| हारुन रशीद के अहद मे काज़ी का मनसब (ओहदा) उनको हासिल हुआ जिसकी वजह से इमाम अबु हनीफ़ा रह0 का मज़हब फ़ैल गया और तमाम आस-पास के मुल्को इराक़, खुरासान तक इसकी शोहरत हुई और ये मज़हब फ़ैला|
तकलीद की मज़म्मत(विरोध)
अल्लाह ने क़ुरान मे फ़रमाया : इन लोगो ने अल्लाह को छोड़ कर अपने आलिमो और दुर्वेशो अपना रब बना रखा हैं और मरयम के बेटे ईसा को | हांलाकि उन्हें सिवाये अल्लाह के किसी और की इबादत का हुक्म ना दिया गया था जिसके सिवा कोई माबूद नही वो पाक हैं इनके शरीक मुकर्रर करने से|
(सूरह तौबा 9/31)
इमाम फ़खरुद्दीन राज़ी इस आयत की तफ़सीर अपनी तफ़सीर कबीर मतबुआ इस्ताम्बुलजिल्द जिल्दसाजी पेज 623 मे फ़रमाते हैं-
अकसर मुफ़्फ़सरीन कहते हैं की इस आयत मे अरबी लफ़्ज़ अरबाब से मुराद ये नही की यहुदी और ईसाई ने अपने मौलवियो और दुर्वेशो को खुदा बना लिया बल्कि इससे मुराद ये है के उन्होने उनकी इताअत की थी और अपने मौलवियो और दुर्वेशो के हलाल ठहराने को हलाल जानते और हराम ठहराने को हराम जानते|
इस आयत के बारे मे जब हज़रत अदी बिन हातिम रज़ि0 ने अल्लाह के रसूल सल्लल लाहो अलेहे वसल्लम से पूछा के ऐ अल्लाह के रसूल हम तो अपने आलिमो और दुर्वेशो को अपना रब नही ठहराते| तो अल्लाह के रसूल सल्लल लाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया| क्या तुम उनके हराम की गयी चीज़ को जो अल्लाह ने हलाम की थी हराम ना जानते थे और क्या तुम उनके हलाल की गयी चीज़ जिसे अल्लाह ने हराम किया हलाल ना जानते थे| हज़रत अदी बिन हातिम रज़ि0 ने कहा हा ऐसा ही होता था तो अल्लाह के रसूल सल्लल लाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया "यही उनकी इबादत हैं" |
तकलीद का हदीस से जायेज़ा
हज़रत जाबिर रज़ि0 से रिवायत हैं : के हज़रत उमर रज़ि0 नबी सल्लल लाहो अलेहे वसल्लम के पास तौरात का एक नुस्खा लाये और कहा ऐ अल्लाह के रसूल ये तौरात क नुस्खा है और पढ़ना शुरु किया और नबी सल्लल लाहो अलेहे वसल्लम क चेहरा सुर्ख होने लगा तो हज़रत अबु बक्र रज़ि0 ने कहा गुम करे तुझे तेरी मां, क्या नही देखता तू उस चीज़ को रसूल अल्लाह सल्लल लाहो अलेहे वसल्लम के चेहरे पर हैं| हज़रत उमर रज़ि0 ने नबी सल्लल लाहो अलेहे वसल्लम के चेहरे की तरफ़ देखकर फ़रमाया मैं अल्लाह की पनाह मांगता हूं उसके गज़ब से और रसूल अल्लाह सल्लल लाहो अलेहे वसल्लम के गज़ब से| हम अल्लाह के रब होने पर और इस्लाम के दीन होने पर और मुहम्मद सल्लल लाहो अलेहे वसल्लम के नबी होने पर राज़ी हुए|
फ़िर नबी सल्लल लाहो अलेहे वसल्लम ने फ़र्माया : कसम हैं उस ज़ात की जिस के हाथ मे मुहम्मद की जान हैं अगर मूसा तुम्हारे वास्ते ज़ाहिर होते और मुझे छोड़ कर तुम उनकी पैरवी करते तो सीधी राह से भटक जाते और अगर मूसा ज़िन्दा होते और मेरी नबूवत पाते तो सिवाए मेरी पैरवी के उनके पास कोई चारा न होता|"
(मिश्कात)
सहाबा रज़ि0, ताबईन रह0, और ताबाअ ताबईन से
हज़रत उमर रज़ि0 फ़रमाते थे कसम हैं उस ज़ात की जिस के कब्ज़े मे उमर की जान हैं नही कब्ज़ की अल्लाह ने अपने नबी रुह और न उठाया उन से वह्यी को यहां तक की बेपरवाह कर दिया अपनी उम्मत को राय से|
[ मीज़ान शीरानी मतबुआ मिस्र जिल्द 1 पेज 47 मे हैं ]
हज़रत उमर रज़ि0 जब कोई फ़त्वा देते तो कहते कि ये उमर कि राय हैं अगर ठीक हैं तो अल्लाह की तरफ़ से समझो वरना खता हो तो उमर कि तरफ़ से|
[ मीज़ान शीरानी जिल्द 1 पेज 47 मे हैं ]
शरीह रह0 कहते हैं कि हज़रत उमर ने मुझे खत लिखा इस मे ये था कि अगर कोई मसला दरपेश हो और कुरान मे हो तो इससे फ़ैसला करना, अगर ऐसी चीज़ पेश आये जो कुरान मे नही हैं तो इसका फ़ैसला सुन्न्त रसूल सल्लल लाहो अलेहे वसल्लम के मुताबिक करना, अगर असला कोई ऐसा पेश आये जो न कुरान मे हो न हदीस रसूल सल्लल लाहो अलेहे वसल्लम मे हो तो अगर लोग किसी बात पर मुत्तफ़िक हो गये तो इस पर अमल करना| अगर अगर ऐसा मामला पेश आये जो न कुरान मे हो न हदीस मे हो न तुम से पहले इसे किसी ने कहा हैं तो तुझे इख्तेयार हैं कि इन दो बातो मे से एक पंसद करे| एक ये कि इज्तेहाद करके अपनी राय से फ़ैसला करे दूसरा ये के सुकूत कर और कोई फ़ैसला न कर| मेरी राय मे तेरे वास्ते सुकूत बेहतर हैं|
[हुज्जतुल बलाग मतबुआ सिद्दीकी बरेली पेज 154 ]
हज़रत जाबिर बिन जैद रज़ि0 से अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ि0 ने फ़रमाया
कि तुम बसरा के फ़कीहो मे से हो इसलिये हमेशा फ़त्वा कुरान व हदीस के मुवाफ़िक ही देना अगर ऐसा न करोगे तो खुद भी हलाक होगे और हलाक करोगे|
[ हुज्जातुल बलाग पेज 153 ]
हज़रत अबुद्ल्लाह बिन मसऊद रज़ि0 फ़रमाते थे तकलीद करे कोई मर्द किसी मर्द की अपने दीन मे (इस तरह) की अगर ईमान लाये तो वो ईमान लाये ये और अगर काफ़िर करे वो तो काफ़िर करे ये|
[ मीज़ान शीरानी जिल्द 1 पेज 47 ]
हज़रत इब्ने मसऊद रज़ि0 फ़रमाते हैं
के कोई शख्स दीन के बारे मे किसी की तकलीद न करे क्योकि अगर वो मोमिन रहा तो इसका मुकल्लिद भी मोमिन रहेगा और अगर वो काफ़िर हुआ तो इसका मुकल्लिद भी काफ़िर रहेगा| बस बुराई मे किसी की पैरवी नही|
[ अल्लामा अलमौकईन मतबूआ अशरफ़ अल मताबेए जिल्द 1 पेज 217 ]
शाअबी रह0 कहते थे
कि कयास वालो के पास मत बैठो वरना तू हलाल को हराम और हराम को हलाल कर देगा|
[ अल्लामा अल मौकईन जिल्द 1 पेज 94 ]
दाऊद बिन अबी हिन्द रह0 कहते हैं
कि इब्ने सीरिन ने कहा की पहले जिस ने क्यास किया वो शैतान हैं और सूरज और चांद कि क्यास ही से इबादत की गयी हैं|
[ दारमी पेज 25 ]
मुजाहिद अपने शागिर्द से कहते थे
कि मेरी हर बात और हर फ़त्वा मत लिखा करो सिर्फ़ हदीस रसूल सल्लल लाहो अलेहे वसल्लम को लिखने के कायल रहो शायद कि मैं आज जिन चीज़ो का हुक्म देता हूं कल इससे रुजु कर लूं|
[ मीज़ान जिल्द 1 पेज 48 ]
तकलीद की मनाही इमामो के कौल से
चारो इमाम से साबित हो चुका हैं कि उन्होने लोगो को अपनी तकलीद से मना किया हैं और यही हुक्म दिया हैं कि जब कोई बात उन को किताब व सुन्नत से मालूम हो जाये जो उनकी बात के खिलाफ़ हो तो इसी बात को ले जो किताब व सुन्नत से मालूम हुई हो और उन की बात को छोड़ दे|
[ फ़तावा इब्ने तैमिया मतबुआ मिस्र पेज 406 ]
इमाम अबू हनीफ़ा का हुक्म
इमाम अबू हनीफ़ा रह0 से किसी ने पूछा अगर आपने कुछ कहा और कुरान इस के खिलाफ़ हो, इमाम अबू हनीफ़ा रह0 ने जवाब दिया मेरी बात छोड़ दो| इसने फ़िर पूछा कि अगर नबी सल्लल लाहो अलेहे वसल्लम की हदीस आपकी बात के खिलाफ़ हो तो, इमाम अबू हनीफ़ा रह0 ने जवाब दिया मेरी बात छोड़ दो| इसने फ़िर पूछा अगर सहाबा रज़ि0 की बात आपकी बात के खिलाफ़ हो तो, इमाम अबु हनीफ़ा रह0 ने जवाब दिया मेरी बात छोड़ दो|
[ - ]
इमाम आज़म(अबु हनीफ़ा) रह0 ने अपने इस कौल से इशारा किया हैं कि जो नबी सल्लल लाहो अलेहे वसल्लम से पहुंचे वो सर आंखो कुबूल हैं, जो सहाबा रज़ि0 से पहुंचे इस मे इन्तिखाब करेंगें और जो सहाबा क सिवा ताबईन रह0 वगैराह से पहुंचे तो वो आदमी हैं और हम भी आदमी हैं|
[ मीज़ान शीरानी मतबुआ मिस्र पेज 29 ]
कलमात तैयबात मतबुआ मताला अलउलूम मे इमाम अबु हनीफ़ा रह0 क कौल नकल फ़रमाते हैं कि- "जब सही हदीस मिल जये तो वही मेरा मज़हब हैं|"
[ कलमात तैयबात मतबुआ मताला अलउलूम पेज 30 ]
इमाम अबू हनीफ़ा रह0 फ़रमाते थे कि लोग हिदायत पर रहेंगे जब तक कि उन मे हदीस के तलब करने वाले होंगें जब हदीस को छोड़ कर और चीज़ तलब करेंगे तो बिगड़ जायेंगे|
[ मीज़ान सफ़ा 49 ]
हदीसे मर्सल हमरे लिये हुज्जत हैं|
[ ऐनी शरह हिदाया मतबुआ जिल्द 1 पेज 253 ]
इमाम अबू हनीफ़ा रह0 फ़रमाते थे कि ज़ईफ़ हदीस मुझे ज़्यादा मह्बूब हैं लोगो कि राय से|
[ दुर्रे मुख्तार शरह दुर्रे मुख्तार मतबुआ देहली जिल्द 1 पेज 51 ]
इमाम अबू हनीफ़ा रह0 कहते हैं कि जो शख्स मेरी दलील से वाकिफ़ न हो उस को हक़ नही कि मेरे कलाम का फ़त्वा दे|
[ अकीदा अल जैद पेज 70 ]
इमाम अबू हनीफ़ा रह0 फ़रमाते हैं कि किसी को हलाल नही कि मेरी बात को माने जबकि ये न जाने की मैंने क्या कहा हैं, तो तकलीद से मुमानियत कि और मार्फ़त दलील कि जानिब तरगीब दी|
[ मुकदमा हिदाया जिल्द 1 पेज 93 ]
इमाम अबू हनीफ़ा रह0 फ़रमाते थे कि मेरी तकलीद मत करना और न मालिक रह0 कि और न किसी और कि तकलीद करना और अहकाम को वहा से ले जहा से उन्होने लिये हैं किताब व सुन्नत से|
[ मतबुआ फ़ारुकी से पेज 4 ]
इमाम मालिक का हुक्म
इमाम मालिक रह0 फ़रमाते थे मैं भी एक आदमी हूँ कभी मेरी राय सही और कभी गलत होती हैं, तुम मेरी राय को देख लो जो किताब व सुन्नत के मुताबिक हो इसको ले लो और जो मुखालिफ़ हो इसे छोड़ दो|
[ जलबू अल मनफ़आता पेज 74 ]
हाफ़िज़ हमीद ने हकायत की हैं कि कानबी ने ब्यान किया कि मैं इमाम मालिक रह0 के मर्ज़ मौत मे उनके पास गया और सलाम करके बैठा तो देखा उन को रोते हुए| मैंने कहा आप क्यो रोते हैं| फ़रमाया ऐ कानबी मैं क्यो न रोऊ मुझ से बढ़ कर रोने के काबिल कौन हैं मैंने जिस जिस मसले मे राय से फ़त्वा दिया, मुझे ये अच्छा मालूम होता हैं कि उन मसले के बदले कोड़े से मैं मार खाता, मुझको इसमे गुन्जाईश थी काश मैं राय से फ़त्वा न देता|
[ तारीख इब्ने खलकान मतबुआ इरान जिल्द जिल्दसाज पेज 11 ]
इमाम शाफ़ई का हुक्म
इमाम शाफ़ई रह0 फ़रमाते हैं जब मैं कहूँ और नबी सल्लल लाहो अलेहे वसल्लम ने मेरी बात के खिलाफ़ फ़रमाया हो तो, जो मसला नबी सल्लल लाहो अलेहे वसल्लम की हदीस से साबित हो वो अव्वल हैं, लिहाज़ा मेरी तकलीद मत करना|
[ अकदाल ज़ैद पेज 54 ]
इमाम शाफ़ई रह0 से रिवायत हैं वह फ़रमाया करते थे जब सहीह हदीस मिल जाये तो वही मेरा मज़हब हैं| एक और रिवायत मे हैं कि जब मेरी बात को हदीस के खिलाफ़ देखो तो हदीस पर अमल करो और मेरी बात को दीवार पर मार दो| एक दिन मजनी से कहा कि ऐ इब्राहिम हर एक बात मे मेरी तकलीद न करना और इससे अपनी जान पर रहम करना, क्योकि ये दीन हैं| इसके अलावा इमाम शफ़ई रह0 ये भी फ़रमाया करते थे कि किसी कौल मे हुज्जत नही हैं सिवाये रसूल सल्लल लाहो अलेहे वसल्लम के| चाहे कहने वाले बहुत ज़्यादा क्यो न हो, और न किसी क्यास मे, और न किसी शै मे| यहां बात सिवाये अल्लाह और उसके रसूल की तसलीम करने के और कुछ नही हैं|
[ अकदाल ज़ैद पेज 80 ]
अल्लामा मरजानि हनफ़ी फ़रमाते हैं इमाम शाफ़ई रह0 ने फ़रमाया कि सब मुसल्मानो ने इत्तेफ़ाक किया है नबी सल्लल लाहो अलेहे वसल्लम कि हदीस से तो किसी की बात से हदीस ना छोड़ी जाये|
[ नज़रातूलहक मतबुआ बल्गार पेज 26 ]
इमाम शाफ़ई रह0 ने इमाम अहमद रह0 से कहा कि सही हदीस का इल्म तुम को हम से ज़्यादा हैं, जो हदीस सही हुआ करे वह मुझे बता दिया करो ताकि मैं इसी को अपना मज़हब करार दूँ|
[ हुज्जतुल बलाग मतबुआ सिद्दीकी पेज 153 ]
इमाम अहमद बिन हंबल का हुक्म
इमाम अहमद बिन हंबल रह0 फ़रमाते थे कि किसी को अल्लाह और उसके रसूल सल्लल लाहो अलेहे वसल्लम के कलाम के साथ गुन्जाईश नही है|
[ अकदाल ज़ैद मतबूआ सिद्दीकी लाहौर पेज 81 ]
इमाम अहमद बिन हंबल रह0 के बेटे अब्दुल्लाह कहते हैं कि मैने अपने बाप अहमद बिन हम्बल रह0 से दरयाफ़्त किया कि एक शहर ऐसा हैं जहां एक मुहद्दीस हैं जो सही, ज़ईफ़ हदीस का इल्म नही रखता और एक सहाबुल राय हैं| अब आप फ़रमाये कि मैं किस से फ़तवा पूंछू| तो इमाम अहमद बिन हंबल रह0 सहाबुल हदीस से पूछो सहाबुल राय से नही|
[ मीज़ान शअरानी मे मतबुआ मिस्र जिल्द जिल्ददार पेज 51 ]
इमाम अहमद बिन हम्बल रह0 फ़रमाते थे कि अपना इल्म इसी जगह से लो जहां से इमाम लेते हैं और तकलीद मत करो क्योकि ये अंधापन हैं, समझे|
[ मीज़ान शअरानी मतबुआ मिस्र जिल्द जिल्ददार पेज 10 ]
इमाम अहमद बिन हम्बल रह0 फ़रमाते थे और फ़रमाया करते थे कि मेरी तकलीद न करना और न मालिक कि और न औज़ाई कि और न किसी और कि तकलीद करना और अहकाम को वहां से लेना जहां से उन्होने लिये हैं(किताब और सुन्नत)|
[ अकदाल ज़ैद मतबुआ सिद्दीकी लाहौर पेज 81 ]
इस तरह हर दौर के बुज़ुर्गो ने इस उम्मत पर आने वाली तबाही को पहले ही भांप लिया था और वक्त ब वक्त इससे आगाह करते रहे मगर अफ़सोस उम्मत गहरी गुमराहीयो मे गुम हो गयी और उस गुमराही को ही हक समझ बैठी और जो लोग कुरान और सुन्नत के पांबन्द हैं या पांबदी करने की कोशिश करते हैं उन्हें बदमज़हब का खिताब दे देते हैं|
अल्लाह कुरान मे फ़रमाता हैं और जो लोग अल्लाह कि उतारी हुई वह्यी(कुरान और सुन्नत) के साथ फ़ैसला न करें वो काफ़िर हैं|
[ सूरह माइदा 5/44 ]
इमाम अबू हनीफ़ा रह0 के इन्तेकाल के 278 साल के बाद 428 हिजरी मे उनकी तरफ़ मन्सूब करके पहली किताब कुदुरी लिखी गयी, फ़िर 573 हिजरी मे हिदाया लिखी गयी जिसे क़ुरान की तरह माना गया|(नाऊज़ोबिल्लाह) और ढ़ेरो मनगंढत मसले इमाम अबू हनीफ़ा कि तरफ़ मंसूब कर दिये गये और धीरे-धीरे लोग इस मज़हब पर एक के बाद एक जमा होते गये और हिन्दुस्तान मे इस मज़हब की बुनियाद पड़ गयी और अब तो हनफ़ी मसलक के भी अनगिनत टुकड़े हो गये|
नबी सल्लल लाहो अलेहे वसल्लम का इर्शाद हैं हज़रत अबू हुरैरा रज़ि0 रिवायत करते हैं कि नबी सल्लल लाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया – मेरी उम्मत एक ज़माने तक तो कुरान व सुन्नत पर अमल करती रहेगी इसके बाद उम्मती उम्मतीयो कि राय पर चलने लगेगा तो उम्मत गुमराह हो जयेगी|
[ इब्ने कसीर ]
बैतुल्लाह मे चार मुसल्ले
चोथी सदी हिजरी मे तकलीद निकली फ़िर तकलीदी मज़हब पैदा हुये फ़िर इनकी आपस मे इख्तेलाफ़ शुरु हुये|
हनफ़ी शाफ़ई मे इतना इख्तेलाफ़ बढ़ा कि एक दूसरे के पीछे नमाज़ न पढ़ते थे यहां तक की 665 हिजरी मे मिस्र मे चारो मज़हबो के चार काज़ी बना दिये गये| इसके बाद 900 हिजरी के शुरु मे बैतुल्लाह के अंदर चार मुसल्ले बना दिये गये| हालत ये थी जब एक इमाम जमात करा रहा होता तो तीन मसलक के दूसरे नमाज़ी बैठे रहते और एक दूसरे के पीछे नमाज़ नही पढ़ते|
वत तखेज़ू मिम मकामे इब्राहीमा व मुसल्ला की मिसाल को तकलीदी मज़हब ने पारा पारा कर दिया था| सुल्तान इब्ने मसूद रह0 कि कब्र को अल्लाह नूर से भरे कि जब अल्लाह ने उसे हिजाज़ का बादशाह बनाया तो उसने 1343 हिजरी मे बैतुल्लाह से इस बिदअत को मिटा दियाऔर चारो मुसल्लो को ढहा दिया और अल्हम्दुलिल्लाह अब एक ही मुसल्ले पर नमाज़ होती हैं|
सबसे ज़्यादा गौर फ़िक्र की बात ये हैं के आज जो मसलकी तकलीद का दम भरते हैं उनको तो शायद ये भी नही पता के जिन इमाम की तकलीद वो करते हैं खुद उन्होने या उनकी पिछ्ली पुश्त ने उनकी पिछली की पिछली पुश्त ने भी तकलीद को नही जाना सिवाये कुरान और हदीस के| सिर्फ़ सहाबा की जमात थी जो हर मसले का हल कुरान और हदीस से लेती थी लिहाज़ा जो कोई भी कुरान और हदीस से हट कर कही और से किसी और से मसले का हल तलाश करेगा वो खुली गुमराही मे पड़ जायेगा|
Posted by : Islam The Truth
नबी सल्लल लाहो अलेहे वसल्लम का इर्शाद हैं
ReplyDeleteमेरी उम्मत एक ज़माने तक तो कुरान व सुन्नत पर अमल करती रहेगी इसके बाद उम्मती उम्मतीयो कि राय पर चलने लगेगा तो उम्मत गुमराह हो जयेगी|
(इब्ने कसीर)
iska proper reference dijiye..