Monday, May 15, 2017

तलाक, हलाला और खुला की हकीकत

तलाक और इस्लाम
यूं तो तलाक़ कोई अच्छी चीज़ नहीं है और सभी लोग इसको ना पसंद करते हैं इस्लाम में भी यह एक बुरी बात समझी जाती है लेकिन इसका मतलब यह हरगिज़ नहीं कि तलाक़ का हक ही इंसानों से छीन लिया जाए |

पति पत्नी में अगर किसी तरह भी निबाह नहीं हो पा रहा है तो अपनी ज़िदगी जहन्नम बनाने से बहतर है कि वो अलग हो कर अपनी ज़िन्दगी का सफ़र अपनी मर्ज़ी से पूरा करें जो कि इंसान होने के नाते उनका हक है |

इसी लिए दुनियां भर के कानून में तलाक़ की गुंजाइश मौजूद है | और इसी लिए पैगम्बरों के दीन (धर्म) में भी तलाक़ की गुंजाइश हमेशा से रही है, दीने इब्राहीम की रिवायात के मुताबिक अरब जाहिलियत के दौर में भी तलाक़ से अनजान नहीं थे, उनका इतिहास बताता है कि तलाक़ का कानून उनके यहाँ भी लगभग वही था जो अब इस्लाम में है लेकिन कुछ बिदअतें उन्होंने इसमें भी दाखिल कर दी थी |

किसी जोड़े में तलाक की नौबत आने से पहले हर किसी की यह कोशिश होनी चाहिए कि जो रिश्ते की डोर एक बार बन्ध गई है उसे मुमकिन हद तक टूटने से बचाया जाए |

जब किसी पति पत्नी का झगड़ा बढ़ता दिखाई दे तो अल्लाह ने कुरआन में उनके करीबी रिश्तेदारों और उनका भला चाहने वालों को यह हिदायत दी है कि वो आगे बढ़ें और मामले को सुधारने की कोशिश करें इसका तरीका कुरआन ने यह बतलाया है कि एक फैसला करने वाला शोहर के खानदान में से मुकर्रर करें और एक फैसला करने वाला बीवी के खानदान में से चुने और वो दोनों जज मिल कर उनमे सुलह कराने की कोशिश करें, इससे उम्मीद है कि जिस झगड़े को पति पत्नी नहीं सुलझा सके वो खानदान के बुज़ुर्ग और दूसरे हमदर्द लोगों के बीच में आने से सुलझ जाए.

अल्लाह ने कुरआन में इसे कुछ यूं बयान किया है :
और अगर तुम्हे शोहर बीवी में फूट पड़ जाने का अंदेशा हो तो एक हकम (जज) मर्द के लोगों में से और एक औरत के लोगों में से मुक़र्रर कर दो, अगर शोहर बीवी दोनों सुलह चाहेंगे तो अल्लाह उनके बीच सुलह करा देगा, बेशक अल्लाह सब कुछ जानने वाला और सब की खबर रखने वाला है | (कुरआन सूरह अन- निसा 35).

इसके बावजूद भी अगर शोहर और बीवी दोनों या दोनों में से किसी एक ने तलाक का फैसला कर ही लिया है तो शोहर बीवी के खास दिनों (Menstruation) के आने का इन्तिज़ार करे, और खास दिनों के गुज़र जाने के बाद जब बीवी पाक़ हो जाए तो बिना हम बिस्तर हुए कम से कम दो जुम्मेदार लोगों को गवाह बना कर उनके सामने बीवी को एक तलाक दे, यानि शोहर बीवी से सिर्फ इतना कहे कि "मैं तुम्हे तलाक देता हूँ"

तलाक हर हाल में एक ही दी जाएगी दो या तीन या सौ नहीं, जो लोग जिहालत की हदें पार करते हुए दो तीन या हज़ार तलाक बोल देते हैं यह इस्लाम के बिल्कुल खिलाफ अमल है और बहुत बड़ा गुनाह है | अल्लाह के रसूल (सल्लाहू अलैहि वसल्लम) के फरमान के मुताबिक जो ऐसा बोलता है वो इस्लामी शर्यत और कुरआन की मज़ाक उड़ा रहा होता है |

इस एक तलाक के बाद बीवी 3 महीने यानि 3 तीन हैज़ (जिन्हें इद्दत कहा जाता है और अगर वो प्रेग्नेंट है तो बच्चा होने) तक शोहर ही के घर रहेगी और उसका खर्च भी शोहर ही के जुम्मे रहेगा लेकिन उनके बिस्तर अलग रहेंगे, कुरआन ने सूरेह तलाक में हुक्म फ़रमाया है कि इद्दत पूरी होने से पहले ना तो बीवी को ससुराल से निकाला जाए और ना ही वो खुद निकले, इसकी वजह कुरआन ने यह बतलाई है कि इससे उम्मीद है कि इद्दत के दौरान शोहर बीवी में सुलह हो जाए और वो तलाक का फैसला वापस लेने को तैयार हो जाएं |

अक्ल की रौशनी ने अगर इस हुक्म पर गोर किया जाए तो मालूम होगा कि इसमें बड़ी अच्छी हिकमत है, हर मआशरे में बीच में आज भड़काने वाले लोग मौजूद होते ही हैं, अगर बीवी तलाक मिलते ही अपनी माँ के घर चली जाए तो ऐसे लोगों को दोनों तरफ कान भरने का मौका मिल जाएगा, इसलिए यह ज़रूरी है कि बीवी इद्दत का वक़्त शोहर ही के घर गुज़ारे |

फिर अगर शोहर बीवी में इद्दत के दौरान सुलह हो जाए तो फिरसे वो दोनों बिना कुछ किये शोहर और बीवी की हेस्यत से रह सकते हैं इसके लिए उन्हें सिर्फ इतना करना होगा कि जिन गवाहों के सामने तलाक दी थी उनको खबर करदें कि हम ने अपना फैसला बदल लिया है, कानून में इसे ही "रुजू" करना कहते हैं और यह ज़िन्दगी में दो बार किया जा सकता है इससे ज्यादा नहीं |

अल्लाह कुरआन में फरमाता है :
"यह तलाक जिसमें पति अपनी बीवी की इद्दत के समय में "रुजू" कर सकते हैं] दो बार ही इजाज़त दी है।" (कुरआन सूरह बक्राह,-229)

शोहर रुजू ना करे तो इद्दत के पूरा होने पर शोहर बीवी का रिश्ता ख़त्म हो जाएगा, लिहाज़ा कुरआन ने यह हिदायत फरमाई है कि इद्दत अगर पूरी होने वाली है तो शोहर को यह फैसला कर लेना चाहिए कि उसे बीवी को रोकना है या रुखसत करना है, दोनों ही सूरतों में अल्लाह का हुक्म है कि मामला भले तरीके से किया जाए, सूरेह बक्राह में हिदायत फरमाई है कि अगर बीवी को रोकने का फैसला किया है तो यह रोकना वीबी को परेशान करने के लिए हरगिज़ नहीं होना चाहिए बल्कि सिर्फ भलाई के लिए ही रोका जाए

अल्लाह कुरआन में फरमाता है :
और जब तुम औरतों को तलाक दो और वो अपनी इद्दत के खात्मे पर पहुँच जाएँ तो या तो उन्हें भले तरीक़े से रोकलो या भले तरीक़े से रुखसत करदो, और उन्हें नुक्सान पहुँचाने के इरादे से ना रोको के उनपर ज़ुल्म करो, और याद रखो के जो कोई ऐसा करेगा वो दर हकीकत अपने ही ऊपर ज़ुल्म ढाएगा, और अल्लाह की आयातों को मज़ाक ना बनाओ और अपने ऊपर अल्लाह की नेमतों को याद रखो और उस कानून और हिकमत को याद रखो जो अल्लाह ने उतारी है जिसकी वो तुम्हे नसीहत करता है, और अल्लाह से डरते रहो और ध्यान रहे के अल्लाह हर चीज़ से वाकिफ है | (कुरआन सूरह अल बक्राह-231)
हदीसे नबवी है :
सारी हलाल चीजों में अल्लाह के नज़दीक सबसे ना पसन्दीदा चीज़ तलाक़ है | ( अबू दावूद )

लेकिन अगर उन्होंने इद्दत के दौरान रुजू नहीं किया और इद्दत का वक़्त ख़त्म हो गया तो अब उनका रिश्ता ख़त्म हो जाएगा, अब उन्हें जुदा होना है |

इस मौके पर कुरआन ने कम से कम दो जगह
(सूरेह बक्राह आयत 229 और सूरेह निसा आयत 20 में) इस बात पर बहुत ज़ोर दिया है कि मर्द ने जो कुछ बीवी को पहले गहने, कीमती सामान, रूपये या कोई जाएदाद तोहफे के तौर पर दे रखी थी उसका वापस लेना शोहर के लिए बिल्कुल जायज़ नहीं है वो सब माल जो बीवी को तलाक से पहले दिया था वो अब भी बीवी का ही रहेगा और वो उस माल को अपने साथ लेकर ही घर से जाएगी, शोहर के लिए वो माल वापस मांगना या लेना या बीवी पर माल वापस करने के लिए किसी तरह का दबाव बनाना बिल्कुल जायज़ नहीं है |

नोट: अगर बीवी ने खुद तलाक मांगी थी जबकि शोहर उसके सारे हक सही से अदा कर रहा था या बीवी खुली बदकारी पर उतर आई थी जिसके बाद उसको बीवी बनाए रखना मुमकिन नहीं रहा था तो महर के अलावा उसको दिए हुए माल में से कुछ को वापस मांगना या लेना शोहर के लिए जायज़ है |

अब इसके बाद बीवी आज़ाद है वो चाहे जहाँ जाए और जिससे चाहे शादी करे, अब पहले शोहर का उस पर कोई हक बाकि नहीं रहा |

इसके बाद तलाक देने वाला मर्द और औरत जब कभी ज़िन्दगी में दोबारा शादी करना चाहें तो वो कर सकते हैं इसके लिए उन्हें आम निकाह की तरह ही फिरसे निकाह करना होगा और शोहर को महर देने होंगे और बीवी को महर लेने होंगे।

अब फ़र्ज़ (assume) करें कि दूसरी बार निकाह करने के बाद कुछ समय के बाद उनमे फिरसे झगड़ा हो जाए और उनमे फिरसे तलाक हो जाए तो फिर से वही पूरा प्रोसेस दोहराना होगा जो मैंने ऊपर लिखा है, अब फ़र्ज़ (assume) करें कि दूसरी बार भी तलाक के बाद वो दोनों आपस में शादी करना चाहें तो शरयत में तीसरी बार भी उन्हें निकाह करने की इजाज़त है। लेकिन अब अगर उनको तलाक हुई तो यह तीसरी तलाक होगी जिस के बाद ना तो रुजू कर सकते हैं और ना ही आपस में निकाह किया जा सकता है।
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हलाला
अब चौथी बार उनकी आपस में निकाह करने की कोई गुंजाइश नहीं लेकिन सिर्फ ऐसे कि अपनी आज़ाद मर्ज़ी से वो औरत किसी दुसरे मर्द से शादी करे और इत्तिफाक़ से उनका भी निभा ना हो सके और वो दूसरा शोहर भी उसे तलाक देदे या मर जाए तो ही वो औरत पहले मर्द से निकाह कर सकती है, इसी को कानून में "हलाला" कहते हैं|

लेकिन याद रहे यह इत्तिफ़ाक से हो तो जायज़ है जान बूझ कर या प्लान बना कर किसी और मर्द से शादी करना और फिर उससे सिर्फ इस लिए तलाक लेना ताकि पहले शोहर से निकाह जायज़ हो सके यह साजिश सरासर नाजायज़ है और अल्लाह के रसूल (स) ने ऐसी साजिश करने वालों पर लानत फरमाई है।
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खुला'
अगर सिर्फ बीवी तलाक चाहे तो उसे शोहर से तलाक मांगना होगी, अगर शोहर नेक इंसान होगा तो ज़ाहिर है वो बीवी को समझाने की कोशिश करेगा और फिर उसे एक तलाक दे देगा, लेकिन अगर शोहर मांगने के बावजूद भी तलाक नहीं देता तो बीवी के लिए इस्लाम में यह आसानी रखी गई है कि वो शहर काज़ी (जज) के पास जाए और उससे शोहर से तलाक दिलवाने के लिए कहे, इस्लाम ने काज़ी को यह हक़ दे रखा है कि वो उनका रिश्ता ख़त्म करने का ऐलान करदे, जिससे उनकी तलाक हो जाएगी, कानून में इसे ''खुला'' कहा जाता है.

यही तलाक का सही तरीका है लेकिन अफ़सोस की बात है कि हमारे यहाँ इस तरीके की खिलाफ वर्जी भी होती है और कुछ लोग बिना सोचे समझे इस्लाम के खिलाफ तरीके से तलाक देते हैं जिससे खुद भी परेशानी उठाते हैं और इस्लाम की भी बदनामी होती है |
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Posted by : मुशर्रफ अहमद

Sunday, May 14, 2017

मुहर्रम और मौजूदा मुसलमान (कुछ हैरतअंगेज और कड़बी हक़ीक़तें)

मुहर्रम और मौजूदा मुसलमान (कुछ हैरतअंगेज और कड़बी हक़ीक़तें)

माह मुहर्रम की नवीं व दसवीं तारीख़ जबर्दस्त अहमियत और इबादत का दिन है। इस दिन हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने नफ़ली रोजे़ रखने का हुक्म दिया है। मातम व मौजूदा रस्म -रिवाज और खुराफ़ात का इस्लाम धर्म से कोई वास्ता (सम्बन्ध) नहीं है।

पवित्र कुरआन में है-
‘‘इस्लाम वह धर्म है जो सबसे अच्छा और सीधा रास्ता दिखाता है।‘‘

लेकिन अत्यन्त खेद व दुःख के साथ यह हक़ीक़त सुपुर्दे क़लम की जा रही है कि हिजरी सन् के इक्कीवीं वर्ष के प्रारम्भ में कर्बला में जो दर्दनाक हादसा पेश आया बाद के अमीरों (शासकों) ने सियासी रंग देकर अपनी हुकूमत क़ायम रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी जिसकी वजह से मुहर्रम की हुर्मत (मर्यादा) खत्म होती गई। और योम-ए-आशूरा (दसवीं मुहर्रम) जो इबादत का एक ख़ास दिन है, को शहादते हुसैन रजिअल्लाहो अन्हु को नज़र कर दिया और इस तरह से मुसलिम कौ़म को एक इन्तिहाई रहमत व इबादत के दिन से महरूम (वंचित) करके ग़म व मातम और अनेक खुराफ़ातों के जाल में जकड़ दिया।

हदीस शरीफ़ में है कि-
“दीन (इस्लाम) में अपनी तरफ से कोई नया काम निकाला जाय वह बिदअ़त है और बिदअत गुमराही है और हर गुमराही जहन्नम में ले जाने वाली है। (बुखारी)

उपर्युक्त हदीस की रू (संदर्भ) में अगर आज हम मुसलिम कौ़म को देखें तो मुसलमानों की एक बड़ी तादाद (संख्या) बिदअ़त में फंसी नजर आयेगी। इसका एक बड़ा कारण मुसलमानों में जाहिलियत के सिवाय और क्या हो सकता है।

सुन्नी मुसलमानों की एक बड़ी तादाद मौलाना रजा खां बरेल्वी से अकी़दत रखती है लेकिन आश्‍चर्य है इसके बावजूद वह मुहर्रम की खुराफात में खूब बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते है | हालांकि मौलाना रजा खां बरेल्वी ने भी ऐसी खुराफातों से मना किया है और इन्हें बिदअत और नाजायज व हराम लिखा है और ताजिये देखने से भी मना किया है।

चुनांचे उनका फ़तवा है |
ताजिया आता देखकर एराज व रूगर्दानी कर (मुंह फेर) लें उसकी ओर देखना ही न चाहिए। (इरफाने शरियत भाग1 पृ015)
और पृष्ठ 16 पर एक सवाल के जवाब में कहते हैं कि
मुहर्रम पर मर्सिया पढ़ना नाजायज है वह मनाही और मुनकरात (नास्तिकता) से पुर होते हैं।
इनका एक रिसाला (पत्रिका) है। इसके पर लिखते हैं |
ताजिये पर चढ़ाया हुआ खाना न खाना चाहिए अगर नियाज़ देकर चढ़ायें या चढ़ाकर नियाज़ दें इस पर भी ऐतराज करें। ( ताजियेदारी पृ0 11 )

फिर यह सब सिर्फ बिदअत ही नहीं बल्कि इससे भी बढ़कर यह षिर्क (अनेकेश्‍वरवाद) व बुत परस्ती क अन्तर्गत आ जाती है क्योंकि प्रथम तो हुसैन (रजिअल्लाहो अन्हु) की रूह आत्मा को मौजूद समझा जाता है। इसी प्रकार मज़ारों में पीरों-फक़ीरों के बारे में भी ऐसा ही समझा जाता है तभी तो उनको काबिले ताज़ीम समझते हैं और उनसे मदद मांगते हैं। हालांकि किसी बुजुर्ग की रूह (आत्मा) को हाज़िर व नाज़िर (विद्यमान) जानना और आलिमुल गै़ब (छुपी बातों को जानने वाला) समझना शिर्क और कुफ्र है।

चुनांचे हनफ़ी मजहब की विश्‍वसनीय किताब में लिखा है,
जो शख्स यह विश्‍वास रखे कि बुजुर्गों की रूहें हर जगह हाजिर व नाजिर है। और ज्ञान रखती हैं, वह काफिर (नास्तिक) है। ( फताबा बजाजिया )

द्वितीय, ताजिया परस्त ताजियों के सामने सिर झुकाते हैं जो सजदे के अन्तर्गत ही आता है और कई लोग तो खुल्लम-खुल्ला सजदा बजा लाते हैं और गैर अल्लाह (अल्लाह के अतिरिक्त) को सजदा करते हैं, चाहे वह इबादत के तौर पर हो या ताजीम (आदर) के लिए, खुला शिर्क है।

चुनांचे अल्लाम क़हसतानी हनफी फरमाते हैं कि-
गैर अल्लाह को सजदा करने वाला बिल्कुल काफिर है, सजदा इबादतन हो या ताजीमन। (रद्दुल मुख़्तार)
मातम व ताजियेदारी की ईजाद
सन् 352 हिजरी के प्रारम्भ में इब्ने बूसिया ने हुक्म दिया कि 10 मुहर्रम को हजरत हुसैन रजिअल्लाहो अन्हु की शहादत के गम में तमाम दुकानें बन्द कर दी जायें। शहर व देहात के लोग मातमी लिबास पहनें और मातम करें।

शीओं ने इस हुक्म का पालन खुशी से किया मगर सुन्नी दम-बखुद और खामोश रहे, क्योंकि शीओं की हुकूमत थी।

इसके बाद शीओं ने हर साल इस रस्म को अमल में लाना शुरू कर दिया और आज तक इसका रिवाज हिन्दुस्तान में हम देख रहे हैं। अजीब बात यह है कि हिन्दुस्तान में अक्सर सुन्नी लोग भी ताजिया बनाते हैं।‘(तारीखे इस्लाम अकबर नजीबाबादी पृ0 66 जिल्द 2 प्रकाशित कराची)

मुख्य बातें
शहादत मनाने का हुक्म होता तो नबियों से बढ़कर हजरत हुसैन रजिअल्लाहो अन्हु की शहादत नहीं हो सकती। बनी इस्राईल में कई नबियों को शहीद किया गया। आखिरी पैगम्बर हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम के चाचा हजरत हमजा रजिअल्लाहो अन्हु की शहादत बड़ी दर्दनाक और यातना भरी है। शहादत मनाई जाती तो मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम अपने चाचा की शहादत मनाते और हुक्म भी देते लेकिन ऐसा नहीं किया।

हजरत उसमान रजिअल्लाहो अन्हु जो मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम के दामाद थे उनकी भी दर्दनाक शहादत कुरआन पढ़ते में हुई। एक और मुख्य बात हजरत अली रजिअल्लाहो अन्हु, जो हजरत हुसैन रजिअल्लाहो अन्हु के पिता और मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम के दामाद थे, की भी दर्दनाक शहादत हुई। अब गौ़र तलब बात है कि इनके बेटे हजरत हुसैन रजिअल्लाहो अन्हु ने शहादत क्यों नहीं मनाई तो फिर हजरत हुसैन रजिअल्लाहो अन्हु की शहादत क्यों मनाई जाती है?

Saturday, May 6, 2017

झूटी हदीस क्यू गढ़ी गई

जिस वजह से हदीस गढ़ी गई उसके कुछ खुलासे इस पोस्ट में किये गए है जेसे. . . .

1. अल्लाह से नजदीकी दिखाने की झूटी नियत अल्लाह से नज़दीकी की नियत झूटी हदीस गढ़ने वाले अपने आप में लोगो को नैक और भलाई की तालीम देने की चाह रखते या उन्हें बुराईयो से रोकना चाहते और कुछ बाते बनाकर हदीसो की सूरत में बयान करते है | ऐसे लोग ख़ास तोर से ज़ाहिद और सूफी होते और ये सबसे बुरी हदीस गढ़ने वाले माने जाते है | क्यूकी लोग उनकी ज़ाहिरी शक्ल और सूरत और तक़वा की वजह से उनकी बातो को बहुत जल्द क़बूल कर लेते है |

मेसरा बिन अब्द रुबा इमाम इब्ने हिबन (र.अ.) ने अपनी कितबुज़्ज़ुआफ़ा में इब्ने मेहदी से रिवायत करते है कि
मेने मैसारा से पुछा आप ये हदीस कहा से लेते है की अगर फल'न फल'न चीज़ पढ़े तो उसके लिए यह सवाब है आदि आदि | तो उसने जवाब दिया कि ये बाते मेरी अपनी गढ़ी हुई होती है | मै इस तरह लोगो को भलाई और नेकी की तरफ बुलाता हूँ |

2. अपने मज़हब की ताईद वा बढ़ावा शियासी व मज़हबी गिरोह के वजूद के बाद जेसे ख्वारजी और शिया आदि , हर गिरोह के लोगो ने अपने मज़हब की ताईद और बढ़ावा के लिए हदीस गढ़ी जेसे की रिवायत है की अली लोगो में सबसे बेहतरीन है और जो इसमें शक करे वोह काफ़िर है |

3. दीन इस्लाम पर बोहतान लगाना जब लोग इस्लाम में कीड़ी और तरह खुले तोर पर बिगाड़ पैदा न कर सके तो ख़ुफ़िया तोर पर उन्होंने यह राय अपना ली और फिर बोहुत सी बाते गढ़ी और नापसन्दीदा बाते हदीसो और रिवायत की शक्ल में लोगो के अन्दर फेलादी, फिर उन्ही की बुनियाद पर इस्लाम को बदनाम करने लगे |

जेसे मुहम्मद बिन सईद शामी एक मशहूर ज़िनदिक थे उसके इन बुरे कामो के बिना पर ही इसे सूली पर लटकाया गया और फिर वोह अलामसलुब ख़याल इसकी गढ़ी हुई एक रिवायत इस तरह है |
जो वो अनस (र.अ) मार्फू'अन ज़िक्र करता था,
मै खातिमुननबीयीन हु मेरे बाद कोई नबी नहीं यह है कि अल्लाह चाहे |

4. वक्त के हुक्मुरान से करीब होना कुछ कमज़ोर ईमान वाले लोग वक्त की हुकूमत की चाहत के लिए कुछ रिवायत गढ़ कर उनके सामने बयान करते उनके यहाँ. अपने दरजात बढ़ने की कोशिश करते थे जेसे...

"घयास बिन इब्राहीम नखाई कूफी उसका मशहूर वाक्या है की जो अमीरुल मोमिनीन मेहन्दी अब्बासी यहाँ पेश आई है ये शक्स जब ख़लीफा के यहाँ गया तो देखा की वह कबूतरों से खेल रहे है उसने जाते ही अपनी सनद से रसूल (स.अ.व) तक एक गढ़ी हुई हदीस सुनाई जो इस तरह है |
आप रसूल (स.अ.व.) ने फ़रमाया मुक़ाबला सिर्फ नेज़ाबाज़ी, ऊँट दौड़, घोड़ो की दौड़ और परिंदों (कबूतर आदि) में ही जाईज़ है |"

गयास ने इस रिवायत में परिंदों के पर या कबूतर के लफ्ज़ अपनी तरफ बढ़ा दिये थे, ख़लीफा खुश हो गया मगर मेहन्दी को इस गढ़ी हुई हदीस का पता चल गया उसने कबूतरों को ज़िबह करने का हुकूम दिया और कहा मेने इस शक्स के ये गढ़े हुए अलफ़ाज़ रसूल (स.अ.व.) के फरमान से ज़ियाद्दती करने पर उभारा है |

5. रिवायतो का बयान रोज़गार का ज़रिया बना लेना कुछ किस्सा सुनाने वाले लोग आवाम में ऐसी झूटी रिवायत बयान करते है जिनमे अजीब सा राज़ होता है | और इस तरह वोह चाहते है की लोग उनकी महफ़िलो बैठे और नज़राना पेश करे |
अबू सईद मद्यानी का नाम इन्ही में शामिल है |

6. मशहूर होने की चाहत कुछ लोग ऐसी ऐसी अनोखी रिवायत बयान करते है की वह किसी और के पास नहीं है, या वोह सनद बदल देते है ताकि लोग उनकी तरफ माईल हो और उनकी मशहूरी हो जेसे इबने अबी दह्या और हिमादुननसीब

हवाला : तैसीर मुस्ताल्हुल हदीस तबरीब रावी, जिल्द 1, पेज 282, 284, 286.

JHUTI HADISE KYON GADHI GAI

Jin Wazah Se Hadithe Gadhi Gai uske kuch khulase is post me kiye gaye hai jese

1: Allah se Nazdeeki dekhane ki jhooti Niyat Allah Se Nazdiki Ki Niyat Jhuti Hadithe Gadhne Wale Apne Ap Me Logo Ko Neki Aur Bhalai Ki Talim Dene Ki Chah Rakhte Ya Unhe Buraiyo Se Rokna Chahte Aur Kuch Bate Banakar Haditho Ki Surat Me Byan Karta Hai Aise Log Khas Taur Se Zahid Aur Sufi Hote Aur Ye Sabse Buri Hadith Gadhane Wale Mane Jate Hai Kyo Ki Log Unki Zahiri Shakl Wa Surat Aur Taqwa Ki Wazah Se Unki Bato Ko Bahut Jald Qabul Kar Lete Jese

Maisra Bin Abd Ruba Imam Ibne Hiban rh. Ne Apni Kitabuzzuafa Me Ibne Mehadi Se Riwayat Karte Hai Ki
" Maine Maisara Se Pucha Ap Ye Hadith Kaha Se Late Hai Ki Agar Fala'n Fala'n Chez Padhe To Uske Liye Yah Sawab Hai Etc. To Usne Jawab Dia Ki Ye Bate Mere Apni Gadhi Hui Hoti Me Is Tarah Logo Ko Bhalai Aur Neki Ki Tarf Bulata Hu"

2:Apne Mazhab Ki Taeed Wa Badhawa: Shiyasi Wa Mazhabi Giroh Ke Wazud Ke Bad Jese Khwarij Aur Shia etc, Har Giroh Ke Logo Ne Apne Mazhabi Ki Taid Wa Badhawe Ke Liye Hadithe Gadhi Jese Ki Riwayat Hai Ki Ali Logo Me Sabse Behtreen Hai Aur Jo Isme Shak Kare Wah Kafir Hai

3: Deen Islam Par Bohtan Lgana Zindiq Log Jab Islam Me Kisi Aur Tarah Khule Taur Par Bigad Paida Na Kar Sake To Khufiya Taur Par Unhone Yah Ray Apna Li Aur Phir Bahut Si Gandi Aur Napasndida Bate Haditho Wa Riwayat Ki Shakl Me Logo Ke Andar Faila Di Phr Unhi Ki Buniyad Par Islam Ko Badnam Karne Lage

Jese Muhammad Bin Saeed Shami Ek Mashhoor Zindik Tha Uske In Bure Kamo Ke Bina Par Hi Ise Suli Par Latkaya Gaya Aur Phir Wah Alamsalub Kahlaya Iski Gadhi Hui Ek Riwayat Is Tarah Hai
Jo Wo Anas r.a Se Marfu'an Zikr Karta Tha Me Khatimunnbiyyeen Hu Mere Bad Koi Nabi Nahi Yah Yeh Ki Allah Chahe

4: Waqt Ke Huqmran Se Qarib Hona Kuch Kamzor Iman Wale Log Waqt Ki Huqumat Ki Chaht Ke Liye Kuch Riwayte Gadh Kar Unke Samane Byan Karte Aur Unhe Khush Karke Unke Yaha Apna Darza Badhane Ki Koshis Karte The Jese

Ghayas Bin Ibrahim Nakhaee Kufi Uska Mashhor Waqya Hai Ki Jo Amirul Momineen Mehandi Abbasi Yaha Pesh Ayi Ye Sakhs Jb Khalifa Ke Yaha Gaya To Dekha Ki Wah Kabutaro Se Khel Raha Hai Usne Jate Hi Apni Sanad Se Rasul s.a.w Tak Ek Gadhi Hui Hadith Sunai Jo Is Tarah H
Aap Rasul s.a.w Ne Farmaya Muqabla Sirf Nezabazi ,Oont Daud , Ghore Ki Daud , Aur Pairdo(kabutar etc) Me Hi Jaiz Hai"

Gayas Ne Is Riwayat Me Parindo Ke Par Ya Kabutar Ke Lafz Apni Tarf Se Badha Diye The Khalifa Khush Ho Gaye Magar Mehndi Ko Is Gadhi Hui Hadith Ka Pata Chal Gaya Usne Kabutaro Ko Zabah Karne Ka Huqm Dia Aur Kaha Mene Is Shaks Ke Ye Gadhe Huwe Alfaz Rasul s.a.w Ke Farman Se Jydati Karne Par Ubhara Hai

5: Riwayto Ka Bayan Rozgar Ka Zariya Bana Lena Kuch Qissa Sunane Wale Log Awam Me Aisi Jhuti Riwayat Bayan Karte Jinme Azib Sa Raz Hota Aur Is Tarah Wah Chahte Ki Log Unki Mahfilo Me Bethe Aur Nazrane Pesh Kare Abu Saeed Madayani Ka Nam Inhi Me Shamil Hai

6: Mashhoor Hone Ki Chahat Kuch Log Aisi Aisi Anokhi Riwayte Bayan Karte Hai Ki Wah Kisi Aur Ke Pas Nahi Hai, Ya We Sanade Badal Dete Taki Log Unki Taraf Maaeel Ho Aur Unki Mashhuri Ho Jese Ibne Abi Dahya Aur Himadunnasib

HWALE- Taiseer Mustalhul Hadith Tabreeb Ravi Jid 1 Page Page 282, 284, 286

Wednesday, May 3, 2017

दुआ के बाद हाथो को चेहरे पर फेरना

दुआ के बाद हाथो को चेहरे पर फेरना
अल्लाह कुरान में फरमाता है
और हमने ये किताब नाजिल फरमाई है जिस में हर चीज़ का साफ़ बयान है एयर हिदायत और रहमत और खुशखबरी है मुसलमानों के लिए ( कुरान, अल-इसरा 17, आयत 89 )
रसूल अल्लाह (स.अ.व.) ने फ़रमाया
“सबसे बेहतरीन कलाम अल्लाह की किताब है और सबसे बेहतरीन तरीका मुहम्मद (स.अ.व.) का तरीका है |” ( सहीह अल-बुखारी, वोलियम 9, किताब 92, हदीस #382 )

ये साबित नहीं है की रसूल अल्लाह (स.अ.व.) दुआ लारने के बाद अपने चेहरे पर अपना हाथ फेरते थे | बहुत सी हदीसे है जो कहती है की रसूल अल्लाह (स.अ.व.) ने अल्लाह को दुवाओ में पुकारा लेकिन कोई साबित रिवायत नहीं है जो कहती है की रसूल अल्लाह (स.अ.व.) ने दुवाओ के बाद अपने चेहरे पर अपना हाथ फेरा | जो ये कहता है की दुआओं के बाद चेहरे पर हाथ फ़ेरना चाहिए वो कुछ हदीस को बयान करते है लेकिन तहकीक करने पर ये पता चलता है की वो हदीस सहीह नहीं है |

पहली रिवायत
ये रिवायत किया गया था की इबने अब्बास (र.अ.) ने कहा की
रसूल अल्लाह (स.अ.व.) ने फरमाया “जब तुम अल्लाह से दुआ मांगो, सीधी हतेली से मांगो उलटी हातेली से मत मांगो और जब दुआओं को ख़तम करो तो अपने चेहरे पर (अपना हाथो को) फेरलो |” ( सुनन इबने माजाह 3866, इस हदीस को इमाम इबने माजाह ने ज़ईफ़ करार दिया है | )
देखे : सुनन इबने माजाह http://Sunnah.Com/Ibnmajah/34/40

दूसरी रिवायत
यज़ीद इबने सईद अल-किन्दी (र.अ.) रिवायत करते है
“जब रसूल अल्लाह (स.अ.व.) दुआए मांगते थे वो अपने हाथो को उठाते थे और अपने हाथ अपने चेहरे पर फेरते थे |” ( सुनन अबी दावुद 1492, इस हदीस को अल्बानी ने ज़ईफ़ करार दिया है | )
देखे : सुनन अबी दावुद http://Sunnah.Com/Abudawud/8/77

शैख़ अल-इसलाम इबने तयमियाह कहते है |
रसूल अल्लाह (स.अ.व.) के दुआ में हाथ उठाने के हवाले से ये साबित है क्यूकी बहुत सी सहीह हदीसे है लेकिन दुआ के बाद चेहरे पर हाथ फेरने की सिर्फ एक या दो हदीस है जिन्हें दलाईल के तोर पर नहीं लिया जा सकता है (क्यूके वो हदीसे ज़ईफ़ है |) ( फ़तवा अल-इज्ज़ इबने अब्द अल-सलाम, पेज 47 )

तो शरियत में इस अमल की इजाज़त नहीं है | लोगो को दुआओं के बाद अपने जिस्म पर भी हाथ नहीं फेरने न ही अपने आँखों को चूमना चाहिए |

उलेमाओं ने ये बयान किया है की अंगूठे को चूम कर अपने आँखों पर रखना एक बिद्दत है जो की सुफीयो के तरीके से इजाद हुआ है और जो इसके बारे में हदीसे है वो रसूल अल्लाह (स.अ.व.) पर झूठा मनसूब किया गया है |

अल्लाह हम सब को बिद्दतो से महफूज़ रख्खे , कुरान और सहीह हदीस पर अमल करने की नैक तोफीक़ दे | हिदायते इल्म और दिदायत अ अमल अता फरमाए और हमारी इबादत कबूल फरमाये | आमीन ||

अल्लाह सुभानो वा ताला हम सब को सही दीन सीखने और समझ ने की तोफीक़ दे और सहीह हदीस के मुताबिक अमल की फोफीक दे | आमीन ||

अल्लाह से दुआ है के हम को घर वालो को आप लोगो को और सारे मुसलमानों को कुरान और सुन्नत को सहबा के मनहज पर अमल करने वाला फिर दावत देने वाला बनाये | आमीन या रब्बुल आलामीन |

Click to Roman Urdu LINK ROMAN URDU

Tuesday, May 2, 2017

Dua Ke Baad Hatho Ko Chehre Par Ferna

Dua Ke Baad Hatho Ko Chehre Par Ferna
Allah Pak Quran Me Farmate Hai
Aur Hamne Yeh Kitab Nazil Farmaee Hai Jiss Mein Her Cheez Ka Saaf Biyan Hai Aur Hidayat Aur Rehmat Aur Khuskhabri Hai Musalmanon Kay Liye. (Al Quran, Al Israa 17, Ayat 89)
Rasoollallah Sallallhu Alaihi Wasallam Ne Farmaya
Sabse Behtareen Kalam Allah Ki Kitab Hai Aur Sabse Behtareen Tareeqa Muhammad Sallallahu Alaihi Wasallam Ke Tareeqa Hai …” (Sahih Al Bukhari: Volume 9, Book 92, Hadith 382)

Ye Sabit Nahi Hai Ki Rasoolallah Dua Karne Ke Baad Apne Chehre Par Apna Hath Ferte The. Boht Si Ahadiths Hai Jo Kahti Hai Ki Rasool Allah ﷺ Ne Allah Ko Duao Me Pukara Lekin Koi Sabit Riwayat Nahi Hai Jo Kahti Hai Ki Rasoolallah Ne Duao Ke Baad Apne Chehre Par Apna Hath Fera. Jo Ye Kahte Hai Ki Duao Ke Baad Chehre Par Hath Ferne Chaiye Wo Kuch Hadiths Ko Bayan Karte Hai Lekin Tahkeek Karne Pe Ye Pata Chalta Hai Ki Wo Hadiths Saheeh Nahi Hai:

Pahli Riwayat
Ye Riwayat Kiya Gaya Tha Ki Ibn Abbas R.A. Ne Kaha Ki
Rasoolallah Ne Farmaya:
“Jab Tum Allah Se Dua Mango, Sidhi Hatheli Se Mango Ulti Hatheli Se Mat Mango Aur Jab Duao Ko Khatm Karo To Apne Chere Par(Apne Hatho Ko) Ferlo. (Zaif) (Sunan Ibn Majah 3866. Is Hadith Ko Imam Ibn Majah Ne Zaif Karar Diya Hai.)
Source Link Of Sunan Ibn Majah

Dusri Riwayat
Yazid Ibn Sa’id Al-Kindi R.A. Riwayat Karte Hai
Jab Rasoolallah Duae Mangte The Wo Apne Hatho Ko Uthathe The Aur Apne Hath Apne Chehre Par Ferte The.(Zaif) (Sunan Abi Dawud 1492. Is Hadith Ko Sheikh Albani Ne Zaif Karar Diya Hai.)
Source Link Of Sunan Abu Daud

Shaykh Al Islam Ibn Taymiyah Kahte Hai:
Rasoolallah Ke Dua Me Hath Uthane Ke Hawale Se Ye Sabit Hai Kyuki Boht Si Sahih Hadiths Hai Lekin Dua Ke Baad Chehre Par Hath Ferne Ki Sirf Ek Ya Do Hadits Hai Jinhe Dalaail Ke Taur Par Nahi Liya Ja Sakta Hai(Kyuki Wo Hadiths Zaif Hai). (Majmoo’ Al-Fataawa , 22/519 )
Al-‘Izz Ibn ‘Abd Al-Salaam Kahte Hai:
Dua Karne Ke Baad Apne Hatho Ko Apne Chehre Par Siwae Jahil Ke Koi Nahi Ferta. (Fataawa Al-‘Izz Ibn ‘Abd Al-Salaam , P. 47 )

Toh Shariat Me Is Amal Ki Ijazat Nahi Hai. Logo Ko Duao Ke Baad Apne Jism Par Bhi Hath Nahi Ferna Chaiye Na Hi Apne Ankho Ko Chumna Chaiye.

Ulemao Ne Ye Bayan Kiya Hai Ki Anguthe Ko Chum Kar Apne Aankho Par Rakhna Ek Biddat Hai Jo Ki Sufio Ke Tareeke Se Ijaad Hua Hai Aur Jo Iske Bareme Hadiths Hai Wo Rasoolallah Par Jhutha Mansub Kiya Gaya Hai.

Allah Hum Sabko Biddaton Se Mehfuz Rakhe , Quran Aur Sahih Hadees Per Amal Kerne Ki Neik Tawfeq De ,Hidayat E Ilm & Hidayat E Amal Ata Farmaye Aur Humari Ibadat Ko Qabul Farmaye .Aameen !

Allah Subhanahu Wa Ta'ala Hum Sabko Sahih Deen Seekhne Aur Samjhe ki Taufeeq De Aur Hume Quran Aur Sahih Hadees Ke Mutabik Amal Ki Taufeeq De Ameeen

Allah Se Du'a Hai Ke Hum Ko Ghar Walon Ko Aap Logon Ko Or Sare Musalmano Ko Quran O Sunnat Ko Sahaba Ke Manhaj Par Amal Karne Wala Fir Daw'at Dene Banaye Ameen Ya Rabbal Almenn

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#IslamicLeaks #UmairSalafiAlHindi

Monday, May 1, 2017

WHICH SECT (FIR'QA) WILL ENTER INTO JANNAH

WHICH SECT (FIR'QA) WILL ENTER INTO JANNAH? & WHAT YOU CALL YOURSELF?
Allah says in Al-Qur’an,
“[Believers], you are the best community singled out for people: you order what is right, forbid what is wrong, and believe in God.” ( Chapter #3, Verse #110 )

This verse refers the whole believers, the Muslims, as one community and the best one who invite towards good and forbid evil; and one who would set an example of Unity, Integrity, Brotherhood, Truthfulness and Trustfulness to the rest of the communities. Because of these dominating features, the Muslims were called “Khayra ‘Ummati” i.e. The Ummah (Community) who performs good. But regrettably, instead of being the model of Integrity and One Brotherhood, today Muslim ummah has created divisions among themselves and thus in the sacred religion of Islam too. Instead of being called as Muslim, they feel proud to be named as a people of particular sect or division.

This mindset of Muslim Ummah has provided the Dis-believers with an amplified opportunity to take over us and harm the basis of religion of Islam. Once the biggest empire has now divided in the name of sects and are fighting among themselves. And the Non-Muslims are never hesitant to take the full advantage of it. Intervention of Western Alliances in Shia- Sunni based disturbed regions like Iraq, Afghanistan, Syria, Egypt, etc and political advantages driven by politicians in the name of sects in India, Pakistan, Bangladesh, Myanmar, etc are among the few examples of this.

What is the Mystery of these sects in Islam?

Prophet Mohammed in his last Sermon said,
“All mankind is from Adam and Eve, an Arab has no superiority over a non-Arab nor a non-Arab has any superiority over an Arab; also a white has no superiority over black nor a black has any superiority over white except by piety (taqwa) and good action. Learn that every Muslim is a brother to every Muslim and that the Muslims constitute one brotherhood.” And urged from his Ummah not to create sect and division in Islam. (Reference: Al-Bukhari, Hadith 1623, 1626, 6361. Sahih of Imam Muslim also refers to this sermon in Hadith number 9. Imam al-Tirmidhi has mentioned this sermon in Hadith nos. 1628, 2046, 2085. Imam Ahmed bin Hanbal has given us the longest and perhaps the most complete version of this sermon in his Masnud, Hadith no. 19774.)

Reading this, an obvious question arises that when Allah subhanawatala and his final messenger Mohammed(pbuh) forbidden creating sect and division in islam or ummah then

What is the Mystery behind the Creation of Sects in Islam.

ProphetMohammed (pbuh) said
"My Ummah will be divided into 73 sects" ( Abu Dawood Hadith 4579 )
ProphetMohammed (pbuh) said
“My Ummah will split into seventy-three sects. All of them are in the Fire except one sect. "And which is it O Messenger of Allah?' He said : "What I am upon and my companions” ( Trimidi Hadith 171 )

Fatwas on 73 Sects Hadith in Islam: Will Innovators be in Hell Forever? Or
Only one sect will enter into Jannah and rest of them not?
https://www.facebook.com/notes/peacetv-a-call-towards-islamopen-group/fatwas-on-73-sects-hadith-in-islam-will-innovators-be-in-hell-forever/654519884683326

Note: There are group of people believes that only one sect will enter into Jannah and rest of them will abode into hell fire forever. Go through the above note for the detail answer on this issue.

For a long time, there exist many Islamic Groups having their purpose of maintaining the sanctity and essence of Islam among Muslims and undertaking the work of da’waah to spread Islam among Non-Muslims. Normally they all have common belief in Allah that he is the only Creator and Sustainer of the world,in all his prophets including the Prophet Mohammed (pbuh) (his Final Messenger), in the day of Judgement, and in Qur’an &Sahih Hadith.

But the Irony of the current situation is that, now these Groups have slowly shifted from calling themselves as Islamic Groupto “A SECT”. The questions raises now, why do they call themselves a sect rather than merely an Islamic group, which worksfor the cause of Allah?

Answer to this Question too lays in the above quoted Sahih Hadiths.
The Hadith of Prophet says :
“My Ummah(Muslims) will be divided into 73 sect and only one will enter into jannah” who are they ? “Those who follow the prophet and Sahabas.” According to the Hadith of Sahih Muslim 6023,which says that the practices of Prophet are nothing but Qur’an.AndSahabas are the strict followers of prophet’sSunnah. In brief, those who follow the Qur’an and Sahi Hadith will enter into Jannah.(In Shaa Allah) In one of the Hadith of Prophet Mohammed, he said,“A group of my ummah will continue to prevail, following the truth. They will not be harmed by those who humiliate them until the decree of Allaah comes to pass when they are like that.”(Narrated by Muslim#1920)
NOW THESE GROUPS JUST REALIZED THAT “THE PEOPLE WHO WILL ENTER INTO JANNAH HAS TO BE “A SECT”AND NOT SIMPLY“AN ORDINARY GROUP” SO THEY ARE MAKING A SHIFTING FROM CALLING “ISLAMIC GROUP”TO “A SECT( WHICH WILL ENTER INTO JANNAH)”

Note: The Issue related to the “Four Imams” links provided end of the notes:
We have many Islamic Groups like, Tableegh, Salafees, Ahle Hadith, Ahl al-Sunnahwa’l-Jamaa’ah, Jamat-tul-Muslimeen, etc… many.

TABLEEGEH JAMMAT:

I had a Talk with many Scholars of TableegeJammat, this Jammat has many negative points and very few positive point.
This Jammat also known as “Bidha(Innovators In Islam)Jammat” in many countries of the World.
For more detail go through the below link:

JAMM'AT AL-TABLEEGH- PROS AND CONS:

https://www.facebook.com/notes/peacetv-a-call-towards-islamopen-group/jammat-al-tableegh-pros-and-cons/374498202685497

Many people from this Jammat openly call that they are the only Group/ Sect/ people who will enter into Jannah; and those who joins them will get the same as they do.

AHLE SUNNA-TUL-JAMMAT:

This group basically has the long tradition following “Sufism”, they normally believe in Intercession of righteous dead to fulfill their wishes.

For More Detail:
ARE THE SUFI SHAYKHS REALLY IN CONTACT WITH ALLAAH?

The majority of this group people say, Those, who doesn’t believe in intercession of Righteous dead person, peer/baba/ Fakir/Awaliya, are Not Muslim and “We are the only people going to enter into Jannah”

For More Detail:
PROVING THAT TAKING WASILA (TAWASSUL/INTERCESSION) FROM/ON BEHALF OF SOMEONE WHO HAS LEFT THE WORLD IS A FORM OF SHIRK

SALAFEES AND AHLE HADITH JAMMAT:

DR. ZAKIR NAIK TALKS ABOUT SALAFI'S & AHL E HADITH

Dr Zakir Naik on Sects in Islam.

This is another group among the Ummah, which, they claim, are the followers of Salaf-us-SaalihSahaabah.The word Salaf is a shortened version of the word ‘Salaf as-Saalih’, which means the ‘Righteous Predecessors’.Taabi’een and all first three generations.

The imams, in the past and more recently, have said a great deal describing this group. We may choose from among them the following:
  • Sheikh Albani,
  • Sheikh Ibnebaaz,
  • Sheikh Uthaymeen,
  • Sheikh ul Islam Ibnetaimiya,Etc..more.

All the Great Scholars use this term to distinct themselves from Bidha group when required, they call themselves as “Salafi”.
Sheikh Albani Said “Its compulsory to call yourself Salafies”

But when analyse we find, this practice remains fruitful as intended by Sheikh Albani for the time being only, when there was only one Jammat or group called “Salafi”. but today we have many Sect within the “Salafiees” eg. Mathkhali, Suroori and Qutubee. Each Salafi sect calls Kafir to another “Salafi” Group. If sheikh Albani said “its compulsory to call yourself as Salafies”, We should demand production of a proof in the light of Qur’an and Sahi Hadith whether the Qur’an and Sahi Hadith commanded us to call ourselves like this?

And if(Surely) the answer is “NO”,
then taqleed of Sheikh Albani or any other scholar except that of Qur’an and Sahi Hadith is not allowed. Islam permits the taqleed of only Qur’an and Sahi Hadith”.
And Allah Says :
“Produce a proof if you are truthful” ( Al-Qur’an ch 2 Verse 111)

AHLE HADITH JAMMAT

This is another group among the Ummah, which, they claim, are the followers of“ Qur’an and Hadith” i.e. “words of Allah and words of prophet” .Since, the hadith can be Sahih and Daeef, the better word to use for “Me” is “Ahle Sahi Hadith” as I follow only Sahi Hadith excluding the Daeef ones. The imams, in the past and more recently, have said a great deal describing this group.
  • Al-Haakim
  • Al-Khateeb Al-Baghdaadi
  • Shaykh al-Islam Ibn Taymiyah
  • Imam Shafee,
  • Imam Muslim,
  • Imam Hanbal,
  • Imam Yahya bin saeed, Imam Tirmidhi,
  • Abu Daood,
  • IbneKhuzaimah, IbneHibban,
  • Imam Baihiqi,
  • Imam KhateebBaghdadi,
  • IbneQayyim, Ibne Abdul bar,
  • Imam Dhahabi,
  • Imam ABuhatimrazi,
  • Abdullah ibnemuabrak,
  • Haroonurrashid(khalifa) QaziIyadh,
  • Abdul QadirJailani, Ibnekathir,

There is no much difference between Salafi and Ahle hadith groups as the essence of both are same and the conditions too. Like Salafiees, in Ahle Hadith too we find many sects (like Jam'iyyah Ahle Hadees, GurbaAhle Hadith, etc.) calling another Ahle Hadith groups, Mujahidin(KNM). In some country they call themselves “Ansari”. All belongs to same group but Name is different.

Note : Recently, during a discussion, I came to know that according to them, Following Qur’an and Sahi Hadith Will not sufficient a person to not enter into Jannah but He/ She Has to be a Ahle Hadith also.

NOW EACH GROUP OR SECT CLAIMS TO BE THE SAVED GROUP:

For more detail Go through the below links.
CHARACTERISTICS OF THE SAVED GROUP & WHO ARE THE SAVED GROUP? COMMENTS:
NOTE: We don’t have any intention to Harm or Hurt any Group or sect, we respect all great scholars and even We use their work in our talks and presentation Allhamdulilah but Taqleed is not allowed, Taqleed of, only Qur’an and Sahi Hadith allowed.

I have to agree that, the groups or Islamic Jammat which is close to the Qur’an and Sunnah is “Ahle Hadith and Salafi” but the recent discussion give me a different angle to my whole perception because of their shifting of Ideals or believe.

POINT: 1
THOSE WHO CALMING THEY ARE THE SAVED GROUP OR SECT ITSELF A HARRAM AND IT’S AN ACT OF CREATING SECTS IN ISLAM:

ISLAM PROHIBITED CREATING SECTS IN ISLAM.

Allah Says :
"As for those who divide Their religion and break up Into sects, thou hast No part in them in the least: Their affair is with Allah: He will in the end Tell them the truth of all that they did." ( Al-Qur’an 6:159 )
Allah Says :
"And hold fast All together, by the rope Which Allah (stretches out for you),and be not divided among yourselves;" (the word “rope” refers to Qur’an and Sahi Hadith) ( Al-Qur’an 3:103 )

Some may argue for the sect by quoting the above mentioned hadith of our beloved Prophet which says of fragmentation of Muslim ummah into seventy-three sects.

But we neglect the essence of these hadith while quoting them which reports the prophet’s prediction of the emergence of seventy-three sects. He never said that Muslims should be active in dividing themselves into sects.

The Glorious Qur’an commands us not to create sects.
Those who follow the teachings of the Qur’an and Sahih Hadith, and do not create sects are the people who are on the true path.

Allah says in Al
Allah Says :
“Obey Allah and Obey His Messenger” ( Al-Qur’an, Chapter #3, Verse #32 )
POINT: 2
WHAT PROPHET MEANS THAT ONLY “ONE SECT WILL ENTER INTO JANNAH”

Many people play with the clause “ONE SECT WILL ENTER INTO JANNAH
and says only one sect (one united group or sect) will enter into jannah and a person who practice Islam in his individual capacity without relating him to any Sect or Group will be denied the same even though he is adhered to the teachings of Qur’an and Sahi Hadith.

Lets take an example to understand the real essence of the word SECT used in the above mentioned hadith. (Disclaimer: The word ‘school’ used here in this example is for purpose of clarity of concept of Sect; otherwise Islam prohibits the creation of sects and different schools of thoughts in Islam. Islam in itself is a school of thought which is Complete in all respect.)

Suppose, while addressing a meeting of students from all schools throughout the country, Education Minister of India makes a Statement that reads:
“All students will fail in Exam except that Group of students who are regular, study well, and follow the teaching of Teacher.”

Does the Education Minister specify any Name of School the student where of will pass the Exam?No!

He means to say that a student, no matter from which part of the country or which school he belongs, who studies well and work hard toward his goal, In shaa Allah, he will pass the exams. Here, students from different areas and schools etc...Who pass the exams can be referred as one Group or Sect.

PROPHET MOHAMMED (PBUH) SENT AS UNIVERSAL MESSENGER TO THE WHOLE MANKIND AND CREATURES:

Allah says in the Qur’an
Prophet Mohammed(pbuh) sent as messenger to the whole mankind not for any particular Nation or group. ( ch.#21, Verse #107 & Ch.#34, Verse #28. )

And while mentioning the kind of people will be achieved felicity, the home of Allah, the Jannah : said only one.

Did Prophet Mohammed (pbuh) Specify any Name of group other than Muslim?
The answer is beautifully ‘NO!’

Whether He said only a people having its association with a group (together with the other persons of the group) will be rewarded with jannah?
The answer remains same - No!

When prophet says only one sect will enter into Jannah, he means to say that a Muslim who is strictly adhering to the teachings of Qur’an and Sunnah (Sahih Hadith), irrespective of his/her nationality, association with an Islamic Group,Colour, Caste and occupation will enter into Jannah.

Allah clearly has given the criteria for the salvation.
THE ONLY WAY OF SALVATION:+

Indeed working in a Jammat in the way of Allah, spreading the Islam is fard, it will not be get effected by shayaten , blessing of Allah upon them and give better results in spreading Islam.

Allah says in the Qur’an
“Let there arise out of you a band of people inviting to all that is good, enjoining what is right, and forbidding what is wrong: They are the ones to attain felicity.” ( Al-Qur’an ch 3 Verses 104 )
This verse particularly referring to a “Dawees” who dedicated themselves in the way of Allah.

It’s very important part of Islam, spreading the Message of Allah to the world and it’s also important for us to join any Jammat or orgnisation which strictly adheres to the Qur’an and Sunnah so that we could not go astray and could adhere to Islam with all its essence.
But when a group or sect or Jammat starts claiming that they only will enter into Jannah, its Haraam in Islam. The Qur’an and Sahi Hadith no-where says that Ahle Hadith, or AhleSunna-tul-Jammat ,or Tableege or Salafees or any particular Group or Jammat only will enter into Jannah. Saying and claiming like this absolutely prohibited and against the teaching of Qur’an and Sahi Hadith.

The words of prophet is very clear in this respect which means “Those who follow the Qur’an and Sahi Hadith Will be the victorious one.

AllahSubanawatala, our Prophet and Islam prohibits creating sects. But at the same time Allah Subanawatala knew that still we, Muslims, will create sects and there will be sects in ummah; and Prophet Mohammed (pbuh) also predicted the same that there will be sects in Ummah and only the people who follow the Qur’an and Sahi will be victorious and they are the true believers of Qur’an and Sahi Hadith.

HOW TO JUDGE?

Allah says in the Qur'an
“Ramadhan is the (month) in which was sent down the Qur'an, as a guide to mankind, also clear (Signs) for guidance and judgment (Between right and wrong).” ( Al-Qur’an ch 2 Verse 185 )

Qur’an and Sahi Hadith is the criteria to judge for what is right and what is wrong. Anyone whatsoever claims verify it with the Qur’an and Sahi Hadith and judge it whether what they do is as per Islam or not. We do agree that there are many organizations closest to Islam than others, but association with these organizations or Jammats shall not be the criteria to judge a person instead a person shall be judged in his individual capacity on the basis of his association with the Qur’an and Sahih Hadith; this is also the Thumb rule that Islam prescribes.

THERE ARE BOUND TO BE DIVIDION WITHIN THE SECTS:

We, Muslims, have divided our community and created many sects - Division on the basis of The Four Imams.

Shafi :later there are many division created within.
Hanafi:again there are many division within.etc

If you come with any New Name of Jammat or sect, there will be a division later within.

WHICH GROUP WILL ENTER INTO JANNAH?

The whole article or note above gives us a clear and detailed view on “Which group will enter into jannah or will be the victorious group on the Day of Judgment.
“Those who follow the Qur’an and Sahi Hadith Will enter into Jannah, all of them referred as one group” They are only Muslims only and nothing else.

QIYAMAT WILL NOT COME UNTIL MUSLIMS BECOME LIKE JEWS AND CHRISTIANS

The Prophet (peace and blessings of Allaah be upon him) told us that his ummah would follow the previous nations, the Jews, Christians and Persians, but this was undoubtedly not praise for their actions, rather it is by way of condemnation and a warning.

It was narrated from Abu Sa’eed (may Allaah be pleased with him) that
the Prophet (PBUH) said:
“You will certainly follow the ways of those who came before you, hand span by hand span, cubit by cubit, until even if they entered the hole of a lizard, you will do so too.”
We asked, “O Messenger of Allaah, (do you mean) the Jews and the Christians?”
He said, “Who else?” ( Narrated by al-Bukhaari, 3269; Muslim, 2669 )

It was narrated from Abu Hurayrah (may Allaah be pleased with him) that the Prophet (peace and blessings of Allaah be upon him) said: “The Hour will not begin until my ummah follows in the footsteps of those who came before it, hand span by hand span, cubit by cubit.” It was asked, “O Messenger of Allaah, like the Persians and Romans?” He said, “Those are the people?”

The Reminder:

In any event, if there is any division between a Muslim and a Christian on the grounds of dogma, belief, ethics or morality, then the cause of such conflict could be traced to an utterance of Paul found in his books of Corinthians, Phillipians, Galatians, Thessalonians, etc., in the Bible.
As against the teaching of the Master (Jesus) that salvation only comes through keeping of the commandments. ( Mathew 19:16-17 )
Paul nails the law and the commandments to the cross Paul nails the law and the commandments to the cross ( Colossians 2:14 )
And. claims that salvation can only be obtained through the death and resurrection of Jesus Christ :
"If Christ be not risen from the dead, then our preaching is vain, and your faith is also vain." ( 1 Corinthians 15:14 )

MUSLIMS FOLLOWING THE SAME FOOT STEPS:

Following the Qur’an and Sahi Hadith, still not sufficient for you enter into jannah but you have to join our group, sect, Or FIR’Q for the salvation.

PART II

WHAT YOU CALL YOURSELF? OR WHAT SHOULD WE CALL OURSELVES?

What should we call ourselves? Those who are the follower of Qur’an and Sahi Hadith, this is the bitterest and hardest reality for choosing other Name rather than what our creator commanded to call ourselves.

When one asks a Person who believes in Allah and his final Messenger, "who are you?", the common answer is either ‘I am a Sunni, or ‘I am a Shia’. Some call themselves Hanafi, or Shafi or Maliki or Humbali. Some say ‘I am a Deobandi’, while some others say ‘I am a Barelvi’, or ‘Tableeg‘ or ‘ Ahle Hadith’ or ‘ Salafi’ or ‘Ahle sunnatul jammat’ etc….

Allah says :
“And strive in His cause as ye ought to strive, (with sincerity and under discipline). He has chosen you, and has imposed no difficulties on you in religion; it is the cult of your father Abraham. It is He Who has named you Muslims, both before and in this (Revelation); that the Messenger may be a witness for you, and ye be witnesses for mankind! So establish regular Prayer, give regular Charity, and hold fast to Allah! He is your Protector - the Best to protect and the Best to help!” ( Al-Qur’an ch 22 Verses 78 )

The word of Allah in the Qur’an says, His believer are Muslims, and all the messengers right from the Adam to Mohammed (peace be upon them all) were Muslims. But the situation of the today Ummah is “Those following the Qur’an and Sahi Hadith” start calling with some other Names, the Name given by Humans. No wonder we come across by saying people “When I start following Qur’an and Sunnah become Ahle Hadith or Salafi or Tableegor Baralvi or Hanafi or Deobandi etc…

But What . . . . .
Allah says in the Qur’an?
And who is better in speech than he who [says: "My Lord is Allah (believes in His Oneness)," and then stands straight (acts upon His Order), and] invites (men) to Allah's (Islamic Monotheism), and does righteous deeds, and says: "I am one of the Muslims." ( Al-Qur’an ch 41 Verses 33 )

On the contrary Allah says those who strive in my way, do the righteous deeds, call yourself Muslims only but We prefer to choose other names over Muslims and we feel too shy to call ourselves Muslim, follower of Qur’an and Sunnah. At least 37 time the word “Muslimoon or “Muslimeen” (both together) occurs in the Qur’an. This Name is chosen by our Creator, Sustainer, of the Whole Universe but we choose many others Name besides, to call ourselves by giving thousand of useless excuses.

When anyone ask, ‘Why do you call yourself with another name beside “Muslims”, they reply “we call ourselves in order to distinct from deviated sect” How justifiable this statement is? “Were there no other deviated sect during the time of Sahabas? Off course there were, Khawarij, munafiq, etc.. Did Sahabas choose any other name besides “Muslims”? No. whether they created any sect by different names? Again the answer is “NO”. Then why shall we call ourselves by any other name beside “MUSLIM”.

We don’t have any problem if someone following any Imam or working in any Islamic Jammat, as long as He or she follows the Qur’an and Sahi Hadith. If “Ahle Hadith, Salafies, Sunna tul Jammat, Tableeg etc.. by the meaning its means follower of Qur’an and Sahi Hadith then we all are that but “We should not use these Names as creating sects or calming the only sect or group or Jammat will enter into Jannah.

CALL YOURSELF ONLY MUSLIM!

The conclusion: What shall we call ourselves?
The answer is “What the prophets of Allah use to call themselves.”
We shall be referred as “Muslim” only.

What was the prophet Mohammed (pbuh) ?Hanafi, Shafi, Malaki, etc..Deobandi, Baralvi, Tableeg, Ahle Hadith, Salafee? What was HE? “Muslim” only.

Allah says in the Qur’an, Mohammed(pbuh) was Muslim:
Allah says in the Qur’an?
"Bear witness that we (at least) are Muslims” ( Al-Qur’an ch 3 Verse 64 )
Allah says in the Qur’an Jesus (pbuh) was Muslim.
Allah says :
“When Jesus found Unbelief on their part He said: "Who will be My helpersto (the work of) Allah?" Said the disciples: "We are Allah's helpers: We believe in Allah, and do thou bear witness that we are Muslims. “ ( Al-Qur’an ch 3 Verse 53 )
Allah says in the Qur’an, Ibrahim(pbuh) was Muslim.
Allah says :
“Abraham was not a Jew nor yet a Christian; but he was true in Faith, and bowed his will to Allah's (Which is Islam), and he joined not gods with Allah.” ( Al-Qur’an ch 3 Verse 67 )
Transliteration: Mā Kāna 'Ibrāhīmu Yahūdīyāan Wa Lā Naşrānīyāan Wa Lakin Kāna Ĥanīfāan MUSLIMĀAN Wa Mā Kāna Mina Al-Mushrikīna.

What we learn for these, those who believe in Allah and Mohammed (pbuh) are MUSLIM only and we should call ourselves MUSLIMS ONLY.

FIRST MUSLIM, AND LAST MUSLIM, FOLLOWERS OF QUR’AN AND SUNNAH.

TAQLEED THE BLIND FAITH (THE FOUR IMAMS) BY ZAKIR NAIK
https://hadithquote.blogspot.ae/2015/10/taqleed-aur-4-imam.html
https://www.facebook.com/notes/peacetv-a-call-towards-islamopen-group/taqleed-the-blind-faith-the-four-imams-by-zakir-naik/374067779395206

When all the Muslim follow one and the same Qur’an then why are there so many sects and different schools of thoughts among Muslims
https://www.facebook.com/notes/peacetv-a-call-towards-islamopen-group/when-all-the-muslim-follow-one-and-the-same-quran-then-why-are-there-so-many-sec/373684282766889

Written by #MohammedAsifAli #AdvAsifAli #MdAsifAli

Tuesday, April 25, 2017

SAJDA E SAHU KAISE KARE

Agar hum hamara pura dhyan namaz mein lagaenge to in-sha-Allah koi galti nahi hoti. Lekin phir bhi agar ho jaati hai to namaz ko durust karne ke liye 'Sajda E Sahu' kar lena zaroori hai, aesa kar lene se namaz sahi ho jaati hai,
SAJDA SAHU (BHUL KE SAJDE) KA BAYAN
Sajda sahu se wo 2 sajde murad hain jo namazi namaz mein bhool ki wajah se salam se pehle ya baad mein karta hai.

Abu Huraira r.a. se riwayat hai
Rasool Allah (ﷺ) ne farmaya:
‘Jab tum main koi namaz padhta hai to shaitan is ki namaz mein shuba daalta hai isko yaad nahi rehta ke kitni rakatei’n padhei’n jab tum mein kisi ko aisa ittefaq ho to baithe baithe 2 sajde kare.’ ( Bukahri: al Sahu 1232 ), ( Muslim: al Masaajid 389 )
3 Ya 4 Rakat Ke Shak Par Sajda:
Abu Saeed Khudri r.a. bayan karte hain ke
Rasool Allah (ﷺ) ne farmaya:
‘Agar tum mein se kisi ko rakat ki tadaad ke bare mein shak pad jaae ke 3 padhi hain ya 4? To shak ko chod de aur yaqeen par etemaad kare. Phir salam pherne se pehle 2 sajde kare. Agar is ne 5 rakat namaz padhi thi to ye sajde iski namaz (ki rakat) ko juft kar deinge aur agar isne poori 4 rakat namaz padhi thi to ye sajde shaitan ke liey zillat ka sabab ho’nge.’ ( Muslim: al Masaajid 571 )
Abdur Rahman bin A’auf r.a. bayan karte hain ke
Rasool Allah (ﷺ) ne farmaya:
Jis shaqs ko namaz mein ye shak padh jaae ke aaya isne 1 rakat padhi hai ya do to wo isko 1 rakat yaqeen kare aur baqiya namaz puri kare, aur jis ko ye shak ho ke is ne 2 padhi hain ya 3 to wo isko 2 rakat yaqeen kare. Aur phir (aaqhri qaede mein) salam pherne se pehle (sahu ke) 2 sajde kare. ( Tirmizee: al Salah 398 – Ibne Majja: Iqaamatis Salah 1209) Imam Tirmizee, Imam Haakim aur Imam Zahabi ne ise Saheeh kaha. )

Sajda Sahu ka tareeqa ye hai ke aaqhri qaede mein tassha‐hud (darood) aur dua padhne ke baad Allahukabar keh kar sajde mein jaei’n. Phir uth kar jalse mein baith kar doosra sajda karei’n aur phir uth kar salam pher kar namaz se farigh hu’n.

Pahle Qaaeda Ke chorne Par Sajda:
Abdullah bin Baheena r.a. se riwayat hai ke
Rasool Allah (ﷺ) ne
Sahaba Ikram ko zohar ki namaz padhai. Toh pehle 2 rakatei’n padh kar khade hogae. (matlab Qaede mein bhul se na baithe) toh log bhi Nabi e Rahmat ke sath khade hogae yah’n tak ke jab namaz padh chuke (aur aaqhri qaede mein salam pherne ka waqt aaya) aur log salam pherne ke muntazir hue (to) Rasool Allah (ﷺ) ne takbeer kahi jabke aap baithe hue the. Salam pherne se pehle 2 sajde keiy phir salam phera. ( Bukhari: al Azan 829 – Muslim: al Masaajid 570 )
Mughaira bin Shoba r.a. kehte hain
Rasool Allah (ﷺ) ne farmaya:
‘Jab koi aadmi 2 rakatei’n ke baad (tassha‐hud padhe baghair) khada hone lage aur abhi poori tarah khada na hua ho to baith jaae lekin agar poori tarah khada hogaya to phir na baith‐te albatta salam pherne se pehle sahu ke 2 sajde adaa kare.’ ( Abu Dawood: al Salah 1036 )
Namaz Se Farigh Ho Kar Batei’n Kar Chukne Ke Baad Sajda:
Hajrat Imraan bin haseen r.a. se riwayat hai ke
Rasool Allah (ﷺ) ne
Asr ki namaz padhai aur 3 rakat padh kar salam pherdiya aur ghar tashreef le gae. Ek Sahaabi Kharbaaq r.a. uth ke Aap ke paas gae aur Aap ke sahu ka zikar kiya to Aap tezi se logo’n ke paas paho’nche. Aur Kharbaaq r.a. ke qaul ki tasdeeq chaahi logo’n ne kaha Kharbaaq r.a. sach kehte hain. To phir Aap ne ek rakat aur padhai. Phir salam pher aur do sajde keiy. Phir salam phera. ( Muslim: al Masaajid 574 )
Abu Huraira r.a. se riwayat hai ke
Rasool Allah (ﷺ) ne
Zohar ya Asr ki namaz padhai aur 2 rakat padh kar salam pher diya, baaz Sahaaba (namaz padh kar) masjid se baahar aagae aur kehne lage ke namaz kam hogai. Ek Sahaabi Zul Yadain r.a. ne Rasool Allah (ﷺ) se arz ki ke kya Aap bhool gae ya namaz kam hogai. Aap ne farmaya: na main bhoola hu’n aur na hi namaz kam hui hai, phir Aap ne Sahaaba Ikram se poocha kya Zul Yadain r.a. sach kehta hai. Inho’n ne kaha haa’n! phir Aap aage badhe aur choti hui namaz padhi pher salam phera phir 2 sajde keiy phir salam phera. ( Bukhari: 482 – Muslim: 573 )

In HAdiths se hame ye malum hua ki Jo shaqs 4 rakat ki jagah 3 padh kar salam pherde phir jab isko malum hojae ke main ne 3 rakat padhi hain to khuwah wo ghar bhi chala jaae aur batei’n bhi karle to phir bhi wo 1 rakat jo reh gai thee padhega isko saari namaz padhne ki zarurat nahi.

4 Ki Jagah 5 Rakat Padhne Par Sajda:
Abdullah bin Masood r.a. riwayat karte hain ke
Rasool Allah (ﷺ) ne
Zohar ki namaz (bhul se) 5 rakat padhai Aap se poocha gaya: Kya namaz mein ziyadati hogai hai? Aap ne farmaya kyou’n? Sahaaba ne arz kiya: Aap ne zohar ki 5 rakat padhai hain. Aap qibla ruqh hue aur 2 sajde keiy phir salam phera aur hamari taraf mutawajje hokar farmaya: Main bhi tumhari tarah Insan hu’n. Main bhi bhulta hu’n jaise tum bhulte ho, pas jab bhool jaou’n to mujhe yaad dilaya karo. ( Bukhari: al Salah 401 – Muslim: al Masaajid 572 )
Sajda Sahu salam se qabl ya baad karne ka zikar to ahadees mein aap mulaheza farma chuke hain. Lekin sirf 1 hi taraf salam pher kar sajde karna aur phir Attahiyyat padh kar salam pherna sunnat se saabit nahi hai, kyou’nke Tirmizee (395) ki riwayat ko Allama Naasir Uddin al Albani ne shaaz (T: Something deviating widely from common rules) kaha.
Ibne Sireen se poocha gaya ke kya Sahu ke sajdo’n ke baad tassha‐hud hai inho’n ne jawab mein farmaya ke Abu Huraira r.a. ki hadees mein tassha‐hud ka zikar nahi hai. ( Bukahri: 1228 )

Source : IqraKitab

Saturday, September 10, 2016

महापाप (बड़े गुनाह) क्या हैं ?

महापाप (बड़े गुनाह) क्या हैं

महापाप (बड़े गुनाह) प्रत्येक वह कार्य जिस का पाप बहुत ज़्यादा हो और पाप और गुनाह के कारण उसकी गम्भीरता बढ़ जाती है, इसी प्रकार प्रत्येक कार्य जिस में लिप्त व्यक्ति के लिए सजा या लानत (धिक्कारित) या अल्लाह के क्रोध का वादा किया गया हो, उसे महापाप कहते हैं।

महापाप (बड़े गुनाह) प्रत्येक वह कार्य जिस का पाप बहुत ज़्यादा हो और पाप और गुनाह के कारण उसकी गम्भीरता बढ़ जाती है, इसी प्रकार प्रत्येक कार्य जिस में लिप्त व्यक्ति के लिए सजा या लानत (धिक्कारित) या अल्लाह के क्रोध का वादा किया गया हो, उसे महापाप कहते हैं।

वास्तविक्ता तो यह है कि महापापों की संख्यां के प्रति हदीस शास्त्रों में मतभेद हैं। कुछ लोगों ने महापाप को  हदीस में बयान की गई सात वस्तुओं में सीमित कर दिया है और कुछ लोगों ने 70 बड़े गुनाह को गिनाया है तो कुछ लोगों ने उस से अधिक कहा है।

परन्तु महापापों की सही संख्यां हदीस से प्रमाणित नहीं है बल्कि यह विद्वानों की कोशिश है कि रसूल की  हदीसों से लिया गया है। जिस कार्यकर्ता को जहन्नम की धमकी, या अल्लाह की लानत या अल्लाह का ग़ज़ब और क्रोध उस पर उतरता है तो वह महापापों में शुमार होगा। जैसा कि इस्लामिक विद्वानों ने महापाप की परिभाषा किया है।

महापापों से अल्लाह और उस के रसूल ने दूर रहने का आदेश दिया है और मानव को अपने आप को इन गंदगियों से प्रदुषित न करने पर उभरा है।

महापाप से अल्लाह और उसके रसूल (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने दूर रहने की आदेश दिया है। जैसा कि
अल्लाह का फरमान है।
“जो बड़े-बड़े गुनाहों और अश्लील कर्मों से बचते हैं और जब उन्हें (किसी पर) क्रोध आता है तो वे क्षमा कर देते हैं।” (सूरः  37)

दुसरे स्थान पर
अल्लाह का फरमान है।
“यदि तुम उन बड़े गुनाहों से बचते रहो, जिनसे तुम्हें रोका जा रहा है, तो हम तुम्हारी बुराइयों को तुमसे दूर कर देंगे और तुम्हें प्रतिष्ठित स्थान में प्रवेश कराएँगे।” (सूरः निसाः 31)

रसूल (ﷺ) ने फरमायाः
“पांच समय की फर्ज़ नमाज़ें और जुमा से दुसरे जुमा तक और रमज़ान से दुसरे रमज़ान तक नेक कार्य गुनाहों के लिए प्रायश्चित हैं जब तक कि महापापों से बचा जाए।” (सिल्सिला सहीहा- अलबानीः 3322)
इस हदीस में स्पष्ठ रूप से बड़े गुनाह से सुरक्षित रहने पर उत्साहित किया है और यह सूचना दी गई है कि नेकियां करने से छोटे पाप मिट जाते हैं। ”

महापाप से प्रायश्चित कैसे संभव है

अल्लाह से वास्तविक तौबा और महापाप से बहुत दूरी के माध्यम से महापाप से प्रायश्चित किया जा सकता है। हमेशा उस पाप के होने के कारण अल्लाह रो रो कर माफी मांगनी चाहिये और यदि वह महापाप किसी व्यक्ति के हक और अधिकार से संबन्धित है तो उस अधिकार को अदा करना अनिवार्य होगा। महापाप अपने अप्राध और अल्लाह की नाराज़गी के कारण कई क़िसमों में विभाजित हैं। सब से बड़ा पाप अल्लाह के साथ शिर्क है। जैसा कि सही हदीस में आया है।

अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि रसूल (ﷺ) ने फरमायाः
“सात सर्वनाश करने वाली चीजों से बचो,
प्रश्न किया गया है, “ वह क्या हैं ? ”
तो आप (ﷺ) ने फरमायाः “अल्लाह के साथ शिर्क, जादू, बेगुनाह की हत्या, अनाथों का माल नाहक खाना, ब्याज खाना, युद्ध की स्थिति में युद्धस्थल से भागना, भोली भाली पवित्र मुमिन महिलाओं पर प्रित आरोप लागना ”
عن أبي هُرَيْرَةَ رضي الله عنه عَنِ النَّبِيِّ صلى الله عليه وسلم قَالَ: اجْتَنِبُوا السَّبْعَ الْمُوبِقاتِ قَالُوا: يا رَسُولَ اللهِ وَما هُنَّ قَالَ: الشِّرْكُ بِاللهِ، وَالسِّحْرُ، وَقَتْلُ النَّفْسِ الَّتي حَرَّمَ اللهُ إِلاَّ بِالْحَقِّ، وَأَكْلُ الرِّبا، وَأَكْلُ مَالِ الْيَتيمِ، وَالتَّوَلِّي يَوْمَ الزَّحْفِ، وَقَذْفُ الْمُحْصَنَاتِ الْمُؤْمِناتِ الْغافِلاتِ). صحيح البخاري: 2766, صحيح مسلم: 89)
(सही बुखारीः 2766 और सही मुस्लिमः 89)
दुसरी हदीस में रसूल ने लोगों को खबरदार करते हुए कहा, महापापों में सह से बड़ा महापाप किया है जिस पर सहाबा ने कहा कि आप ही सूचित करें जैसा कि हदीस में वर्णन हुआ है।

अबू बकरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन हा कि रसूल (ﷺ) ने फरमायाः
“क्या मैं तुम्हें सब से बड़े पापों की जानकारी न दूँ, तीन बर फरमाया, तो हमने कहा, क्यों नहीं, ऐ अल्लाह के रसूल! आप ने कहा, अल्लाह के साथ शिर्क करना, माता पिता की अवज्ञा करना, रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) टेक लगाए हुए थे, तो सीधा बैठ गए और फरमयाः सुनो, झूटी गवाही देना, (रावी ) कहते हैं, यह शब्द रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) बार बार दुहराते रहें, यहां तक कि सबाहा (रज़ियल्लाहु अन्हुम) हृदय में कल्पना करने लगे कि काश रसूल खामूश हो जाते। ”
عن أبي بَكْرَةَ قَالَ: قَالَ النَّبِيُّ صلى الله عليه وسلم: أَلا أُنَبِّئُكُمْ بِأَكْبَرِ الْكَبائِرِ ثَلاثًا، قَالُوا: بَلى يا رَسُولَ اللهِ، قَالَ: الإِشْراكُ بِاللهِ وَعُقوقُ الْوالِدَيْنِ وَجَلَسَ،وَكانَ مُتَّكِئًا،فَقالَ أَلا وَقَوْلُ الزّورِ قَالَ فَما زَالَ يُكَرِّرُها حَتّى قُلْنا لَيْتَهُ سَكَتَ – (صحيح البخاري : 2654)
(सही बुखारीः 2654)

अबदुल्लाह बिन अम्र (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि रसूल (ﷺ) ने फरमायाः
“बेशक सब से बड़े गुनाह में से है कि व्यक्ति अपने माता-पिता को गाली दे, लोगों ने आश्चर्य से पूंछा, क्या कोई अपने माता पिता को गाली देता है ? तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमायाः व्यक्ति दुसरे व्यक्ति के पिता को गाली देता है तो वह उस के पिता को गाली देता है और उस के माता को गाली देता है।”
عن عَبْدِ اللهِ بْنِ عَمْرٍو قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللهِ صلى الله عليه وسلم: إِنَّ مِنْ أَكْبَرِ الْكَبائِرِأَنْ يَلْعَنَ الرَّجُلُ والِدَيْهِ قِيلَ يا رَسُولَ اللهِ وَكَيْفَ يَلْعَنُ الرَّجُلُ والِدَيْهِ قَالَ: يَسُبُّ الرَّجُلُ أَبا الرَّجُلِ فَيَسُبُّ أَباهُ وَيَسُبُّ أُمَّهُ  – صحيح أبي داؤد -الألباني- 5141)
(सही अबू दाऊदः 5141)


परन्तु आज के युग में माता पिता को गाली देना और मारना पीटना और उनकी हत्या करना तो सर्वजनिक घटना हो चुकी है। जरा ध्यान पूर्वक विचार करें कि जब दुसरे व्यक्ति के माता पिता को गाली देना महापाप और बड़ा गुनाह है, क्योंकि संभावना है कि वह व्यक्ति उस के माता पिता को गाली दे, तो माता पिता को गाली देना या उन्हे मारना पीटना या उनकी हत्या का पाप कितना महान होगा जिस की कल्पना भी मुश्किल है.? महापापों की कुछ उदाहरण हदीस के माध्यम से पेश की गईं परन्तु वास्तविक्ता तो यह है कि महापापों की संख्यां के बहुत ज़्यादा हैं, जैसा की हदीस शास्त्रों के बातों गुज़र चुकी हैं और इमाम ज़हबी (उन पर अल्लाह की रहमत हो) ने एक पुस्तक (अल-कबाइर) संकलन किया जिस में महापापों को हदीस एवं क़ुरआन से प्रमाणित किया है।

अल्लाह हमें और आप को महापापों से सुरक्षित रखें। आमीन