Tuesday, March 8, 2016

तलाक की छुरी और हलाले की लानत

Talaaq halala

तलाक की छुरी और हलाले की लानत

तलाक शादीशुदा ज़िन्दगी का बहुत ही तकलीफ़देह मोड़ होता हैं, जिसमे शौहर बीवी के बीच निकाह का पाकीज़ा रिश्ता टूट जाता हैं| इन्फ़िरादी ज़िन्दगी हो या परिवारिक ज़िन्दगी हो, इस्लाम बुनियादी तौर पर कानून, रज़ामन्दी, इत्तेहादी, भाईचारे और मुहब्बत और रहम का परचम बुलन्द करता हैं| लड़ाई-झगड़ा, फ़ूट-बिखराव, असामाजिक और रिश्तो की खराबी को इस्लाम ने बुरा जाना हैं| कानूनी दायरे के तहत इस्लाम ने इत्तेहाद और आपसी रज़ामन्दी को इतनी अहमियत दी हैं के रिश्तो और रिश्तेदारो के हक मे.. मुहम्मद (ﷺ) का फ़रमान हैं के –
रिश्तो को काटने वाला जन्नत मे दाखिल नही होगा| (बुखारी व मुस्लिम)
एक और जगह –
आप (ﷺ) ने फ़रमाया – रहम अल्लाह के अर्श के साथ जुड़ा हैं और कहता हैं जो मुझे मिलाये अल्लाह उसे मिलायेगा जो मुझे काटे अल्लाह उसे काटेगा| (बुखारी व मुस्लिम)
आम मुसल्मानो को यहां तक मिलजुल कर और मुहब्बत के साथ रहने का हुक्म दिया गया के –
फ़रमाने नबवी हैं के –
किसी मुसल्मान के लिये अपने मुसल्मान भाई से तीन दिन से ज़्यादा लाताल्लुक रहन जायज़ नही और जो शख्स जो तीन दिन के बाद इसी हालत मे मर गया वह आग मे जायेगा| (अहमद व अबू दाऊद)

शादीशुदा ज़िन्दगी के बारे मे तो इस्लाम का कानून ही यही हैं के ये रिश्ता (यानि निकाह) ज़िन्दगी भर साथ निभाने और एक दूसरे के साथ वफ़ा करने का रिश्ता हैं जिसके लिये अल्लाह खासकर दोनो(यानि शौहर और बीवी) के दिलो मे मुहब्बत और नर्मी का अहसास पैदा कर देता हैं| यहां तक की दोनो अफ़राद एक दूसरे के करीब से सुख महसूस करने लगते हैं| शादीशुदा ज़िन्दगी की इस छोटी सी ज़िन्दगी मे पाबन्दी, वफ़ादारी, रज़ामन्दी और भाईचारे को इस्लाम ने जितना अहमियत दी हैं इसका अन्दाज़ा दोनो के हक से इस बात से लगाया जा सकता हैं के –

नबी (ﷺ) ने फ़रमाया –
अगर मैं अल्लाह के सिवा किसी दूसरे को सजदा करने का हुक्म देता तो औरतो को हुक्म देता के अपने शौहर को सजदा करे| (तिर्मिज़ी)
एक दूसरी हदीस मे – आप (ﷺ) ने फ़रमाया –
उस ज़ात की कसम जिसके हाथ मे मेरी जान हैं जब शौहर बीवी को अपने बिस्तर पर बुलाये और बीवी इन्कार कर दे तो वो ज़ात जो आसमानो मे हैं नाराज़ रहती हैं| यहा तक कि उसका शौहर उससे राज़ी हो जाये| (मुस्लिम)
इसके अलावा आप (ﷺ) ने और भी जगह लोगो को वाज़ और नसीहत की –
बीवी को गाली न दो| –(मुस्लिम)
बीवी को लौंडी की तरह न मारो| –(बुखारी)
और सबसे अहम जो बात इस रिश्ते मे मर्दो को ताकीद के साथ बताई वो ये के –
तुममे सबसे बेहतर वो हैं जो अपनी बीवी के हक मे बेहतर हैं| (तिर्मिज़ी)

ज़रा गौर फ़िक्र कीजिये! अल्लाह और उसके रसूल (ﷺ) पर ईमान रखने वाला कोई भी मर्द या औरत अपनी शादीशुदा ज़िन्दगी मे उपर बताई गयी तालीमात का इन्कार करके इस्लाम की अज़मत को बिना किसी उज्र के रुसवा करने का ख्याल भी कर सकता हैं| अकसरियत का जवाब नही मे होगा| लेकिन फ़ितरते इन्सानी और आदतो मे इख्तेलाफ़ की वजह से उतार चढ़ाव इन्सानी ज़िन्दगी के ज़रूरी हिस्से हैं जिसमे शादीशुदा ज़िन्दगी मे दूसरे हिस्सो के मुकाबले ज़्यादा दुख और आजमाइश नज़र आती हैं| इब्लीस के चेले हर जगह और हर वक्त शादीशुदा ज़िन्दगी को बरबाद करने के लिये तैयार रहते हैं|

नबी (ﷺ) का इरशाद हैं –
इब्लीस का तख्त पानी पर र्हैं जहा से वो पूरी दुनिया मे अपने लश्कर को रवाना करता हैं और उसे सबसे ज़्यादा चहेता वो शैतान होता हैं जो सबसे ज़्यादा फ़ितना फ़ैलाये| (वापस आकर) एक कहता हैं मैने फ़लां फ़लां कारनामा अंजाम दिया| इब्लीस कहता हैं – तूने कुछ भी नही किया|
फ़िर दूसरा आता हैं वो कहता हैं – मैं फ़लां-फ़लां मर्द और औरत के पीछे पड़ा रहा यहा तक के दोनो को एक दूसरे से अलग करके छोड़ा| इब्लीस उसे अपने पास तख्त पर बिठा लेता हैं और कहता हैं – तूने बड़ा अच्छा काम किया|
(मुस्लिम)

इन इब्लीसी कारनामो के तहत कभी-कभी फ़ितने ऐसा सर उठाते हैं कि पीछा ही नही छूटता और इन्सान की सारी की सारी सूझ-बूझ और अकल्मन्दी धरी की धरी रह जाती हैं और कुछ समझ नही आता के क्या करे| प्यार मुहब्बत के नाज़ुक रिश्ते मे दरार आ जाती हैं और जज़्बात ज़ख्मी हो जाते हैं| ऐसे मुश्किल हालात मे भी इस्लाम हर हाल मे यही रास्ता दिखाता हैं के रिश्ता ऐसे मुश्किल वक्त मे भी किसी तरह बरकरार रहे| लिहाज़ा अगर किसी शौहर की बीवी अगर बदइख्लाक, बदतमीज़ और नाफ़रमान हैं तो शौहर को फ़ौरन ही तलाक का फ़ैसला नही करना चाहिये अगर उसमे नाकामी हो तो दूसरे मौके पर चेतावनी के साथ घर के अन्दर उसका बिस्तर अलग कर देना चाहिये अगर इस मे भी नाकामयाबी और बीवी अपना रवैया ना बदले तो उसे डांट-डपट कर हल्की मार मारने की इजाज़त भी दी गयी हैं|